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Up Kiran, Digital Desk- अरुणाचल प्रदेश की शांत वादियों में इन दिनों एक नई हलचल देखी जा रही है। ईस्ट सियांग, ऊपरी सियांग और सियांग जिलों की गलियों से लेकर नदी किनारे तक सैकड़ों लोगों की आवाज़ गूंज रही है कि हमें जीने दो हमारी जमीन और नदियों को बख्श दो। वजह है केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट (SUMP) जो एक बहु-उद्देश्यीय मेगा डैम है। लेकिन बात केवल डैम की नहीं है। मामला कहीं ज़्यादा गहरा संवेदनशील और बहुपरतीय है।

विरोध की लहर और सड़कों पर उतरे लोग

पिछले शुक्रवार को तीन जिलों में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। नारे पोस्टर और हाथों में झंडे लिए स्थानीय निवासी सड़कों पर उतर आए। विशेष रूप से आदि जनजाति समुदाय के लोग इस परियोजना को लेकर सबसे ज़्यादा आक्रोशित हैं।

पासीघाट निवासी निथ परोन बताते हैं "हम शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे थे लेकिन जैसे ही लोगों की संख्या बढ़ी थोड़ी भगदड़ मच गई और सियांग नदी पर बना झूलता पुल क्षतिग्रस्त हो गया। पुलिस या सुरक्षाबलों ने कोई बल प्रयोग नहीं किया लेकिन तनाव साफ महसूस किया जा सकता था।"

CAPF की तैनाती और तनाव की राजनीति

विरोध अब सिर्फ नाराज़गी तक सीमित नहीं रहा। केंद्र सरकार ने हाल ही में अर्धसैनिक बलों (CAPF) की तैनाती कर दी है ताकि परियोजना के सर्वेक्षण कार्य को अंजाम दिया जा सके। यही कदम स्थानीय लोगों के जले पर नमक बन गया। नवंबर 2024 से चल रहे शांतिपूर्ण विरोध के बीच सेना की मौजूदगी को उन्होंने अपने हक पर चोट माना।

आदिवासी संस्कृति जमीन और जीवन पर संकट

इस परियोजना के ज़रिए जहां सरकार चीन के खतरे का मुकाबला करने की रणनीति बना रही है वहीं स्थानीय निवासियों को डर है कि उनकी कृषि भूमि जलमग्न हो जाएगी सांस्कृतिक स्थल हमेशा के लिए खो जाएंगे और करीब 1 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है और डैम का निर्माण इस पूरे इकोसिस्टम को खतरे में डाल सकता है।

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