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Up Kiran, Digital Desk: "स्वदेशी खरीदें" यह नारा आज का नहीं बल्कि आज़ादी की लड़ाई के दिनों से हमारी चेतना में गूंजता आया है। यह महात्मा गांधी के चरखे की तरह एक प्रतीक है  आत्मनिर्भरता का आत्मगौरव का। मगर विडंबना देखिए आज जब भारत तकनीक विज्ञान और उत्पादन में नई ऊँचाइयाँ छू रहा है तब भी हम बटन पेन और कंघी जैसे साधारण उत्पादों के लिए चीन की ओर देख रहे हैं। ये सिर्फ चीज़ें नहीं हैं बल्कि हमारी आत्मनिर्भरता की अधूरी कहानी हैं।

एक अदृश्य बेड़ियाँ, आर्थिक निर्भरता की मार

भारत आज भी चीन पर भारी मात्रा में निर्भर है और इसका खामियाजा सिर्फ व्यापार घाटे के रूप में नहीं बल्कि रणनीतिक असुरक्षा के रूप में भी भुगतता है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा अब 8 लाख करोड़ रुपये की भयावह सीमा पार कर चुका है  यह एक ऐसा आँकड़ा है जो हर भारतीय को झकझोर देना चाहिए।

हम सोचते हैं कि हम बस एक सस्ता पेन खरीद रहे हैं मगर अनजाने में हम एक विदेशी अर्थव्यवस्था को ताकत दे रहे हैं जो हमारी सीमाओं पर हमारी संप्रभुता को चुनौती देती रही है।

छोटे सामान, बड़ा घाटा

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव की रिपोर्ट एक ऐसा आईना है जिसमें हम अपनी आर्थिक कमजोरी को साफ देख सकते हैं। 2023-24 में भारत ने चीन से 7521 प्रकार के उत्पाद आयात किए  जिनमें शामिल हैं: 54278 करोड़ रुपये के प्लास्टिक और रबर उत्पाद, 42305 करोड़ के कपड़े, 7411 करोड़ के कागज उत्पाद, 2205 करोड़ के लकड़ी से बने सामान, 18769 करोड़ के स्टोन और ग्लास से जुड़े आइटम और सबसे हैरान कर देने वाली बात इन आंकड़ों में वो मामूली चीज़ें भी शामिल हैं जिनका हम आसानी से भारत में उत्पादन कर सकते हैं- बटन पेन कंघी लाइटर।

क्या ये विडंबना नहीं कि जिस देश ने मंगल पर यान भेज दिया वह आज भी अपने बच्चों की पेंसिल बॉक्स में रखे कटर और स्केल चीन से मँगवा रहा है।

चीनी सस्तापन बनाम भारतीय संघर्ष

यह सही है कि भारत में भी ये सारे उत्पाद बनते हैं मगर अक्सर ये लागत में महंगे पड़ते हैं। चीन की विशाल फैक्ट्रियाँ बड़ी मात्रा में उत्पादन कर लागत को इतना नीचे ले आती हैं कि भारत के छोटे उद्योग उनके मुकाबले टिक नहीं पाते। हमारे यहां कारीगर हैं हुनर है मगर वह स्तर और सहयोग नहीं जो उन्हें प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर सके।

और दूसरी ओर है भारतीय ग्राहक  जिसकी जेब सीमित है पर ज़रूरतें असीमित। ऐसे में कम दाम वाला चीनी उत्पाद उसकी प्राथमिकता बन जाता है। यह विकल्प नहीं मजबूरी बन जाती है।

पीएम मोदी की देशवासियों से खास अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देशवासियों से एक सशक्त अपील की  "विदेशी सामानों की निर्भरता को खत्म करें।" उन्होंने कहा कि देश के व्यापारियों को शपथ लेनी चाहिए कि वे सिर्फ मुनाफे के लिए विदेशी सामान नहीं बेचेंगे।

उन्होंने वो कड़वा मगर ज़रूरी सच कहा  "गणेश जी की मूर्तियाँ और होली की पिचकारी भी अब विदेशों खासकर चीन से आ रही हैं।"

कल्पना कीजिए  वो देवता जिनकी पूजा हम 'विघ्नहर्ता' मानकर करते हैं उनकी मूर्तियाँ एक ऐसे देश से आती हैं जिसने हमारे सामने खुद ही कई बार विघ्न खड़े किए हैं।

समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं मानसिकता की भी है

यह लड़ाई बाज़ार से नहीं हमारे मन से शुरू होती है। जब तक हर भारतीय खुद से यह नहीं कहता  मैं स्वदेशी खरीदूँगा भले ही वह थोड़ा महंगा हो मगर वह मेरा अपना है  तब तक असली आत्मनिर्भरता केवल भाषणों तक सीमित रहेगी। यह कोई मामूली बदलाव नहीं यह आत्मसम्मान की क्रांति है।

यदि देशवासी "स्वदेशी" को केवल एक विकल्प नहीं बल्कि कर्तव्य समझें और सरकार उद्योग और उपभोक्ता मिलकर इस दिशा में बढ़ें तो हम अकेले 54000 करोड़ रुपये का व्यापार चीन से भारत की ओर मोड़ सकते हैं। यह रकम सिर्फ आर्थिक ताकत नहीं बढ़ाएगी बल्कि चीन को एक ऐसा संदेश देगी जिसे शब्दों में कहना मुश्किल है।

 

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