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Up Kiran, Digital Desk: ईरान और इजरायल के बीच युद्ध विराम हो चुका है। हालांकि, इन दोनों देशों के बीच युद्ध ने कच्चे तेल की कीमतों को 5 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया था। इससे भारत में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी का खतरा पैदा हो गया था। भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है और इसमें थोड़ी सी भी गड़बड़ी सरकार के बजट को नुकसान पहुंचा सकती है। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से महंगाई भी बढ़ती है। लेकिन अब भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व क्षमता को दोगुना कर रहा है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार 6 नए स्थानों पर रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व बनाने पर विचार कर रही है। जब कच्चे तेल की कीमत कम होगी तो सरकार इसे बड़ी मात्रा में खरीदेगी और कीमत बढ़ने के बाद इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। सरकार ने इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड को नए रिजर्व बनाने के लिए विस्तृत व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया है।

कहां बनाए जाएंगे रिजर्व

सरकार कर्नाटक के मैंगलोर स्पेशल इकोनॉमिक जोन और राजस्थान के बीकानेर में स्टोरेज बनाएगी। इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड इस साल के अंत तक सरकार को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप सकती है। सरकार रिजर्व क्षमता को 90 दिन बढ़ाने की योजना बना रही है। हाल ही में इजरायल से युद्ध के दौरान ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी थी, जो दुनिया को 20 फीसदी कच्चा तेल उपलब्ध कराता है।

भारत में प्रतिदिन 55 लाख बैरल कच्चा तेल खपत होता है, जिसमें से 20 लाख बैरल होर्मुज जलडमरूमध्य से आता है। स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व के पहले चरण में 53.3 लाख मीट्रिक टन क्षमता सृजित की गई है। देश का पहला स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व 10 साल पहले विशाखापत्तनम में बनाया गया था। तब से भारत लगातार इसकी क्षमता बढ़ा रहा है। विशाखापत्तनम के अलावा भारत मैंगलोर और पादुर में भी भूमिगत रिजर्व बना रहा है।

इस पर कितना खर्च आएगा

भारत दूसरे चरण में 65 लाख मीट्रिक टन क्षमता बनाने की योजना बना रहा है। 10 लाख मीट्रिक टन क्षमता विकसित करने में 2500 करोड़ रुपये की लागत आएगी। भारत के पास अभी 77 दिन के आयात के बराबर कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद भंडार है।

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