
Up Kiran, Digital Desk: रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पूरी दुनिया में ऊर्जा का संकट है और तेल की कीमतें भी अस्थिर हैं। ऐसे में भारत, जो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है, क्योंकि वहां से उसे सस्ते में तेल मिल रहा है। इस पर पश्चिमी देश कई बार सवाल उठा चुके हैं, लेकिन भारत ने हमेशा अपना रुख साफ रखा है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने एक बार फिर भारत के इस फैसले का ज़ोरदार बचाव किया है। उन्होंने पश्चिमी देशों पर सीधा निशाना साधते हुए पूछा कि "क्या हमें अपनी अर्थव्यवस्था को बंद कर देना चाहिए?"
कंबोज ने साफ किया कि भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता अपने 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकता। हमारा देश एक विकासशील देश है और हमारे लोगों के लिए लगातार ऊर्जा की आपूर्ति बेहद ज़रूरी है।
पश्चिमी देशों की 'दोहरी नीति' पर सवाल भारतीय राजदूत ने पश्चिमी देशों की 'सुविधाजनक डील्स' (convenience deals) पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एक तरफ वे रूस पर प्रतिबंध लगाते हैं और दूसरे देशों से उससे तेल न खरीदने को कहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ वे खुद ही रूस से गैस खरीदते हैं या अन्य माध्यमों से उससे व्यापार जारी रखते हैं। उन्होंने इसे 'नैतिकता की दोहरी सीढ़ी' बताया।
कंबोज ने जोर देकर कहा कि दुनिया के सभी देशों को अपनी राष्ट्रीय ज़रूरतों और हितों के हिसाब से फैसले लेने का अधिकार है। भारत ने वही किया जो उसके देश के लिए सबसे अच्छा था - जब उसे रियायती दरों पर (यानी सस्ते दाम पर) तेल मिल रहा था, तो उसने उसे खरीदा। यह भारत के राष्ट्रीय हित में था।
भारत का स्पष्ट संदेश रुचिरा कंबोज का यह बयान एक बार फिर दर्शाता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर कितना अडिग है। भारत का कहना है कि वह किसी के दबाव में नहीं आएगा और अपने लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़रूरी कदम उठाएगा, भले ही इस पर पश्चिमी देश सवाल उठाएं। भारत के लिए अपने नागरिकों की भलाई और देश की आर्थिक स्थिरता सबसे ऊपर है।
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