Up Kiran, Digital Desk: दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक ऐसे बड़े बदलाव की आहट सुनाई दे रही है, जिस पर भारत की नज़रें रहना लाज़मी है। दो पड़ोसी देश, पाकिस्तान और बांग्लादेश, जिनके बीच 1971 के बाद से रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं, अब एक-दूसरे के बेहद करीब आ रहे हैं। यह करीबी अब रणनीतिक और खुफिया स्तर तक पहुँच गई है।
खबरों के मुताबिक, पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI), और बांग्लादेश की डायरेक्टरेट जनरल ऑफ फोर्सेज इंटेलिजेंस (DGFI) ने हाथ मिला लिया है। दोनों एजेंसियों ने मिलकर एक ज्वाइंट इंटेलिजेंस मैकेनिज्म की स्थापना की है।
क्या है इस खुफिया गठबंधन का मकसद?
आधिकारिक तौर पर इस गठबंधन का मकसद "तीसरे पक्ष के खतरों" (third-party threats) से मिलकर निपटना और आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना है। दोनों देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने, आतंकवाद-रोधी अभियानों में सहयोग करने और छद्म युद्ध (proxy wars) का मुकाबला करने पर सहमति बनी है।
यह समझौता सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं है। दोनों एजेंसियां बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में समुद्री सुरक्षा (maritime security) को लेकर भी एक-दूसरे का सहयोग करेंगी।
भारत के लिए क्यों हैं इसके गहरे मायने?
"तीसरे पक्ष का खतरा" - यह शब्द भले ही सीधा न हो, लेकिन दक्षिण एशिया के संदर्भ में इसका इशारा अक्सर भारत की तरफ ही होता है। भारत के पूर्वी और पश्चिमी, दोनों सीमाओं पर दो पड़ोसी देशों की खुफिया एजेंसियों का इस तरह एक साथ आना भारत के लिए एक नई और बड़ी रणनीतिक चुनौती है।
यह गठबंधन कई सवाल खड़े करता है:
1971 के खूनी बंटवारे के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच इस स्तर का सहयोग पहले कभी नहीं देखा गया। यह दिखाता है कि इतिहास को पीछे छोड़कर अब नए रणनीतिक समीकरण बन रहे हैं। यह नया खुफिया गठबंधन दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन को बदल सकता है, जिस पर भारत को बहुत गहरी नज़र रखनी होगी।
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