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Up Kiran, Digital Desk: इज़राइल ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूत करने और दुश्मनों को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लिया है। अब देश के सभी खुफिया कर्मियों के लिए अरबी भाषा सीखने के साथ-साथ इस्लाम धर्म का गहन अध्ययन भी अनिवार्य रूप से करना होगा। यह कदम उनकी खुफिया क्षमताओं को मजबूत करने और शत्रुतापूर्ण समूहों से निपटने की रणनीति को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उठाया गया है।

क्यों ज़रूरी है यह कदम? लंबे समय से इज़राइल और उसके पड़ोसी देशों, खासकर गाजा पट्टी में हमास जैसे समूहों के साथ चले आ रहे संघर्ष को देखते हुए, केवल सैन्य और तकनीकी जानकारी ही काफी नहीं मानी जा रही है। खुफिया एजेंसियों को अक्सर दुश्मन की विचारधारा, उसकी प्रेरणाओं, उसकी धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अरबी भाषा और इस्लामी संस्कृति की गहराई से समझ के अभाव में, कई बार महत्वपूर्ण जानकारी की गलत व्याख्या हो सकती है या सही इरादों को समझने में चूक हो सकती है।

इस नई नीति के तहत, इज़राइली खुफिया एजेंसियों के सदस्य न केवल अरबी भाषा में महारत हासिल करेंगे, बल्कि वे इस्लामी कानून (शरिया), कुरान, हदीस (पैगंबर मोहम्मद के कथन) और इस्लामी इतिहास का भी अध्ययन करेंगे। यह उन्हें शत्रुतापूर्ण समूहों की रणनीति, उनके भर्ती प्रक्रिया, उनके संदेशों और उनके आंतरिक कामकाज को अधिक सूक्ष्मता से समझने में मदद करेगा। यह सिर्फ कोड या संचार को समझने से परे, बल्कि 'मनोवैज्ञानिक' और 'सांस्कृतिक' खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

उद्देश्य: बेहतर परिचालन समझ अधिकारियों का मानना है कि दुश्मनों की भाषा, संस्कृति और धर्म को समझने से खुफिया कर्मियों को जमीन पर बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी। इससे वे न केवल बेहतर तरीके से जानकारी जुटा पाएंगे, बल्कि संभावित खतरों का पहले से पता लगा पाएंगे और उनका सामना अधिक प्रभावी ढंग से कर पाएंगे। यह इज़राइल की सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहाँ सैन्य शक्ति के साथ-साथ बौद्धिक और सांस्कृतिक समझ को भी समान महत्व दिया जा रहा है।

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