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Up Kiran, Digital Desk: आने वाले विनायक चतुर्थी के पावन अवसर पर, प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) से बनी गणेश मूर्तियों के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। भले ही PoP की मूर्तियां त्योहारों के बाजारों पर हावी रहती हैं, लेकिन इनकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है – मूर्तियों के विसर्जन के दौरान विषाक्त रसायन झीलों, तालाबों और नदियों में रिसते हैं, जिससे जलीय जीवन का दम घुटता है और कीमती जल स्रोत प्रदूषित होते हैं।

इस चिंता के बीच, महाबूबनगर के शिवशक्ति नगर के एक युवा IT पेशेवर, श्रीकांत चारी, पिछले 16 वर्षों से चुपचाप एक पर्यावरण-जागरूक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका मिशन: हानिकारक PoP मूर्तियों को पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी की मूर्तियों से बदलना, जो बिना किसी प्रदूषणकारी तत्व को छोड़े आसानी से पानी में घुल जाती हैं।

16 साल से 'हरित' अभियान: IT से पर्यावरण योद्धा तक का सफर!

श्रीकांत ने अपनी यात्रा 2010 में शुरू की थी, जब वे B.Tech के छात्र थे। हर त्योहार के मौसम के बाद होने वाले प्रदूषण को देखकर वे काफी परेशान थे। तब से, वे सालाना सैकड़ों मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं और कोलकाता के कुशल कारीगरों को भी इस काम में शामिल कर रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण जागरूकता फैला रहा है, बल्कि पारंपरिक आजीविका का भी समर्थन कर रहा है। अपने भाई अनिल चारी के सहयोग से, वे इन मूर्तियों को महाबूबनगर के शिवशक्ति नगर मंदिर, गड़वाल के सनकुलमेट्टू मंदिर और कलवाकुर्ती में बेचते हैं, जिन्हें स्थानीय समुदाय से काफी सराहना मिल रही है।

श्रीकांत का 'हरित' आवाहन: POP को अलविदा, मिट्टी को अपनाएं!

श्रीकांत ने अपील करते हुए कहा, "त्योहार खुशियां लाते हैं, लेकिन हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं भूलनी चाहिए। अब समय आ गया है कि हम POP मूर्तियों और प्लास्टिक को अलविदा कहें और मिट्टी के गणेश मूर्तियों को पूरे दिल से अपनाएं।" वे नागरिकों से अपने त्योहारों के चुनाव पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर रहे हैं।

जबकि वे IT क्षेत्र में अपने करियर को जारी रखे हुए हैं, पर्यावरण-अनुकूल उत्सवों के प्रति श्रीकांत का समर्पण उन्हें अपने इलाके में एक रोल मॉडल बनाता है। बड़े-बुजुर्गों और युवाओं दोनों का समर्थन मिल रहा है, जिससे उनकी पहल एक जमीनी पर्यावरण आंदोलन का रूप ले रही है।