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धर्म डेस्क। भगवान शिव के प्रिय माह सावन मास की चहल-पहल के साथ कांवड़ यात्रा भी प्रारंभ हो चुकी है। हर हर बम बम का घोष करते हुए हर तरफ कांवड़ियों का रेला नजर आ रहा है। भगवा वस्त्र पहने, गंगातट से कलश में गंगाजल भरे और उसको अपनी कांवड़ से बांधकर अपने कंधों पर लटकार शिवालयों की ओर बढ़ते कांवड़ियों को देखकर मन भक्तिभाव से भर उठता है। सावन में कांवड़ यात्रा मास के सोमवार से प्रारंभ होती है और समापन सोमवार, प्रदोष या शिवरात्रि को होता है। कांवड़ भी कई प्रकार की होती हैं। पवित्र सावन मास में शिव भक्त अलग-अलग तरह की कांवड़ लेकर निकलते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।

वैसे तो कांवड़ कई प्रकार की होती है, लेकिन वर्तमान में मुख्यत: चार प्रकार की कांवड़ का प्रयोग भक्त करते हैं। हर कांवड़ यात्रा के नियम और महत्व अलग होते हैं। कांवड़ में मुख्यतः सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ एवं दांडी कांवड़ हैं। शिव मंदिरों में कांवड़ को लेकर उसके प्रकार के हिसाब से तैयारी भी की जाती है।

सामान्य कांवड़ : सामान्य कांवड़ को लेकर कांवड़िये रास्ते में आराम करते हुए शिवालयों तक पहुंचते हैं। इस प्रकार के कांवड़ के नियम बेहद सहज और सरल है। कांवड़िये रास्ते में कभी भी और कहीं भी विश्राम कर फिर आगे की यात्रा प्रारंभ करते हैं।

डाक कांवड़ : डाक कांवड़ यात्रा बेहद कठिन होती है। इस यात्रा में कांवड़िये गंगा या किसी पवित्र नदी से जल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने तक लगातार चलना होता है। एक बार यात्रा शुरू करने के बाद जलाभिषेक के बाद ही यात्रा संपन्न होती है। डाक कांवड़ यात्रा में कांवड़ को पीठ पर लेकर अनवरत चलना पड़ता है।

खड़ी कांवड़ : खड़ी कावड़ यात्रा में भी कांवड़ियों को लगातार चलना होता है। इसमें एक कांवड़ के साथ दो से तीन कांवड़िएं होते हैं। जब कोई एक थक जाता है, तो दूसरा कांवड़ लेकर चलता है। इस प्रकार की कांवड़ यात्रा में कांवड़ को नीचे जमीन पर नहीं रखते। इसलिये इस यात्रा को  खड़ी कांवड़ यात्रा कहा जाता है।

दांडी कांवड़ : दांडी कांवड़ यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा मानी जाती है। इसमें कांवड़िए को बोल बम का जयकारा लगाते हुए और दंडवत करते हुए यात्रा करते हैं। कांवड़िए घर से लेकर नदी तक और उसके बाद जल लेकर शिवालय तक दंडवत करते हुए जाते हैं। यह कांवड़ यात्रा सबसे कठिन और कष्टकारी होती है। 
 

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