Up Kiran, Digital Desk: देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक, एम्स ऋषिकेश एक बड़े भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद चर्चा में है। कार्डियोलॉजी विभाग के कोरोनरी केयर यूनिट (CCU) के निर्माण के दौरान सामने आई खामियां सिर्फ आर्थिक धोखाधड़ी की कहानी नहीं कहतीं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि कैसे लापरवाही सीधे मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ बन सकती है।
परियोजना में 2.73 करोड़ की गड़बड़ी
सीबीआई की जांच में सामने आया है कि CCU के निर्माण कार्य में करीब 2.73 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। इसमें अस्पताल के पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, एडिशनल प्रोफेसर डॉ. राजेश पसरीचा और स्टोर कीपर रूप सिंह के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।
2017 में इस यूनिट के निर्माण के लिए टेंडर जारी किया गया था, जिसे दिल्ली की एक कंपनी "प्रो मेडिक डिवाइसेस" को सौंपा गया। मगर जिस उम्मीद के साथ यह परियोजना शुरू की गई, वह जल्द ही आरोपों और अनियमितताओं के जाल में उलझती चली गई।
अधूरा निर्माण, गायब उपकरण और फर्जी सर्टिफिकेट
जांच में पता चला कि जिन उपकरणों का भुगतान किया गया, वे CCU में कभी पहुंचे ही नहीं। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 97 लाख रुपये मूल्य का डिफिब्रिलेटर, जो हृदय रोगियों के लिए जीवन रक्षक माना जाता है, यूनिट में कभी इंस्टॉल नहीं किया गया।
जब सीबीआई की टीम मार्च में मौके पर निरीक्षण करने पहुंची, तो दरवाज़े पर 'निर्माणाधीन' का बोर्ड लगा था। भीतर झांकते ही खुलासा हुआ कि न फर्श पूरी तरह बना था, न दीवारों का काम पूरा हुआ था। पर्दे नहीं थे, ऑटोमेटिक दरवाजे नदारद थे और मशीनें या तो गायब थीं या बेतरतीब तरीके से पड़ी थीं।
दस्तावेज़ों में धोखाधड़ी
इतना ही नहीं, स्टोर कीपर और संबंधित प्रोफेसर ने फर्जी प्रमाण पत्र जारी कर दिए, यह बताने के लिए कि परियोजना "संतोषजनक रूप से पूरी हो चुकी है" और उपकरण स्टोर में दर्ज किए जा चुके हैं। हालांकि, सीबीआई की पड़ताल में यह बात सामने आई कि स्टोर में रिकॉर्ड तो थे, लेकिन सामान वास्तव में मौजूद नहीं था।
तीन अधिकारियों पर केस दर्ज
इन खुलासों के बाद भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की धाराओं में केस दर्ज किया गया है। यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इन अनियमितताओं की भनक पहले से किसी को नहीं थी? और अगर थी, तो कार्रवाई में इतनी देर क्यों हुई?
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