
Up Kiran, Digital Desk: यह पूरा मामला मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा और उससे जुड़ी 'ऑपरेशन सिंदूर' बहस से संबंधित है, जिस पर संसद में चर्चा होनी थी। इस महत्वपूर्ण बहस के लिए कांग्रेस ने जिन वक्ताओं का चयन किया था, उनमें मनीष तिवारी का नाम शामिल नहीं था। यह उनके लिए आश्चर्य की बात थी, क्योंकि वह संसद में पार्टी के मुखर और अनुभवी वक्ताओं में से एक रहे हैं।
मनीष तिवारी का 'क्रिप्टिक' पोस्ट: इस बहिष्कार के बाद मनीष तिवारी ने एक क्रिप्टिक पोस्ट किया, जो सीधे तौर पर पार्टी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता दिख रहा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "कभी-कभी, वफादारी को वफादारी से नहीं पहचाना जाता, बल्कि इसे 'जी हुजूरी' या चापलूसी के रूप में देखा जाता है। दूसरी तरफ, कभी-कभी, बेवफाई को वफादारी के रूप में गलत समझा जाता है।"
उन्होंने आगे लिखा, "सबसे दर्दनाक बात यह है कि प्रतिभा को अक्सर नेपोटिज्म या चापलूसी की वेदी पर बलिदान कर दिया जाता है। समय बीतता है, लेकिन कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं।" उनका यह ट्वीट सीधे तौर पर पार्टी के भीतर की राजनीति, चयन प्रक्रिया और उन सिद्धांतों पर सवाल उठाता दिख रहा है, जिनके आधार पर नेताओं को जिम्मेदारी दी जाती है।शशि
थरूर की प्रतिक्रिया: मनीष तिवारी के इस ट्वीट के बाद, कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी प्रतिक्रिया दी। थरूर ने इसे पार्टी का 'अंदरूनी मामला' बताते हुए कहा कि ऐसे मतभेद हो सकते हैं और उन्हें पार्टी के भीतर ही सुलझाया जाना चाहिए। उन्होंने मनीष तिवारी का नाम लिए बिना कहा कि पार्टी के भीतर चर्चा और संवाद के माध्यम से सभी मुद्दों को हल किया जा सकता है, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मामला कांग्रेस के भीतर का है।
मनीष तिवारी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है और विपक्षी गठबंधन 'INDIA' को मजबूत करने में लगी है।
इस तरह के सार्वजनिक बयान पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष और आंतरिक कलह को उजागर करते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी आलाकमान इस मामले पर कैसे प्रतिक्रिया देता है और क्या मनीष तिवारी के इन इशारों को गंभीरता से लिया जाता है।
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