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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हाल ही में एक दिलचस्प राजनीतिक आयोजन हुआ, जिसे "कुटुंब परिवार" नाम दिया गया। इस बैठक में राज्य के विभिन्न हिस्सों से करीब 40 विधायक शामिल हुए, जिनमें अधिकांश विधायक क्षत्रिय समुदाय से थे। इस बैठक की विशिष्टता यह रही कि यह केवल एक सामाजिक या मनोरंजक आयोजन नहीं था, बल्कि इसके साथ एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बना दिया गया, जिसका नाम था "कुटुंब परिवार"। इस ग्रुप में बीजेपी, समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के क्षत्रिय विधायक शामिल हैं।
बीजेपी के विधान परिषद सदस्य जयपाल सिंह व्यास और मुरादाबाद के कुंडारकी से विधायक ठाकुर रामवीर सिंह ने इस बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के कई विद्रोही विधायक भी शामिल हुए। हालांकि, यह बैठक अपने आप में किसी पार्टी या मुद्दे को लेकर नहीं थी, बल्कि एक सामूहिक प्रयास की तरह दिखी, जिसका उद्देश्य क्षत्रिय समुदाय के नेताओं के बीच राजनीतिक संबंधों को मजबूत करना था।
बैठक के दौरान उपहारों का भी वितरण किया गया, जिसमें भगवान श्रीराम की मूर्ति, महाराणा प्रताप की तस्वीर और एक बड़ा कांस्य त्रिशूल शामिल था। हालांकि, इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या था, इस पर अब भी कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ लोग इसे एक 'परिवारिक मिलन' के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे आगामी राजनीतिक घटनाओं के संदर्भ में जोड़कर देख रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस आयोजन के पीछे समाजवादी पार्टी के विद्रोही विधायक राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह का हाथ था। इन दोनों नेताओं ने पर्दे के पीछे रहकर आयोजन को आकार दिया, और बीजेपी के विधायक जयपाल सिंह व्यास और ठाकुर रामवीर सिंह को इसमें अग्रणी रूप से पेश किया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह आयोजन सिर्फ एक साधारण सामाजिक कार्यक्रम था, या फिर इसका राजनीतिक मकसद था?
बैठक में शामिल होने वाले अन्य नेताओं में BSP विधायक उमाशंकर सिंह, बीजेपी विधायक अभिजीत सांगा, और एमएलसी शैलेन्द्र प्रताप सिंह जैसे नेता भी शामिल थे। हालांकि, विपक्ष के कई नेता इस आयोजन से दूरी बनाए रहे। इस आयोजन को लेकर कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि यह आगामी यूपी चुनाव और राज्य में बीजेपी के संभावित बदलावों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश हो सकता है।
"कुटुंब परिवार" के आयोजकों में से एक, ठाकुर रामवीर सिंह ने इस कार्यक्रम को बस एक पारिवारिक आयोजन बताते हुए कहा कि इसमें सभी समुदायों के विधायक शामिल थे, और इसका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं था। उन्होंने इसे सिर्फ एक सौहार्दपूर्ण मिलन का अवसर बताया। लेकिन राजनीति में हर पहलू की विशेष व्याख्या की जाती है, और इस आयोजन को लेकर भी तरह-तरह की राजनीति की जा रही है।
इस आयोजन से यह सवाल भी उठता है कि क्या क्षत्रिय समुदाय अपने राजनीतिक प्रभाव को एकजुट करने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। और यदि ऐसा है, तो इसका प्रभाव यूपी की राजनीति पर क्या पड़ेगा? क्या यह क्षत्रिय नेताओं के लिए एक नया मंच साबित होगा, जो उन्हें सत्ता में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का अवसर देगा?
राजनीतिक विश्लेषक इस बैठक को बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के क्षत्रिय नेताओं के बीच संभावित गठजोड़ के संकेत के रूप में देख रहे हैं। ऐसे आयोजनों से यह भी संकेत मिलता है कि क्षत्रिय समुदाय की राजनीति अब और भी सक्रिय हो सकती है, और आने वाले समय में इस समुदाय का महत्व राज्य की राजनीति में बढ़ सकता है।
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