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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय क्रिकेट टीम के लिए चौथी पारी किसी डरावने सपने से कम नहीं रही है। पिछले एक साल में 124, 147 और 193 जैसे छोटे लक्ष्य भी टीम इंडिया हासिल नहीं कर सकी। ये आंकड़े तो किसी बल्लेबाज़ के स्कोर जैसे लगते हैं, लेकिन असल में ये वो टारगेट हैं जिनका पीछा करते हुए भारत बार-बार लड़खड़ा गया। हैरानी की बात यह है कि ये वही टीम है जिसकी बल्लेबाजी लाइन-अप 8वें नंबर तक मजबूत मानी जाती है।

टेस्ट क्रिकेट में भारत की यह कमजोरी नई नहीं है। 1997 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ भारत 120 का लक्ष्य भी नहीं बना पाया था। घरेलू मैदान पर भी हालात बेहतर नहीं रहे। कोलकाता में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 124 का टारगेट अधूरा रह गया। पिछले साल वानखेड़े में न्यूजीलैंड ने 147 के मामूली लक्ष्य का बचाव कर लिया। यह पैटर्न बताता है कि पिच चाहे सपाट हो या स्पिन लेती हो, चौथी पारी में भारतीय टीम का आत्मविश्वास अक्सर डगमगा जाता है।

भारत द्वारा मिस किए गए सबसे छोटे लक्ष्य

120 रन – वेस्टइंडीज – 1997 – ब्रिजटाउन

124 रन – दक्षिण अफ्रीका – 2025 – कोलकाता

147 रन – न्यूजीलैंड – 2024 – मुंबई

176 रन – श्रीलंका – 2015 – गाले

193 रन – इंग्लैंड – 2025 – लॉर्ड्स

इधर एक और दिलचस्प पैटर्न देखने को मिला है। जब भी भारत टॉस हारकर पहले गेंदबाजी करता है, प्रदर्शन बेहद अस्थिर रहता है। जनवरी 2015 के बाद टॉस हारने पर भारत ने 21 में से 15 मैच तो जीत लिए, लेकिन जो छह मैच हारे, उनमें अंतर इतना बड़ा रहा कि टीम की बैटिंग और मानसिक मजबूती दोनों पर सवाल खड़े हुए। इनमें पुणे में ऑस्ट्रेलिया से 333 रन की हार और इंग्लैंड से 227 रन की बड़ी हार शामिल है।

जनवरी 2015 के बाद टॉस हारकर पहले गेंदबाजी करने पर भारत की हारें

333 रन – ऑस्ट्रेलिया – पुणे – 2017

227 रन – इंग्लैंड – चेन्नई – 2021

28 रन – इंग्लैंड – हैदराबाद – 2024

113 रन – न्यूजीलैंड – पुणे – 2024

25 रन – न्यूजीलैंड – मुंबई – 2024

30 रन – दक्षिण अफ्रीका – ईडन गार्डन्स – 2025

यह सच है कि पिछले दशक में एशियाई पिचों पर टॉस की अहमियत बढ़ गई है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि कभी भारत की पहचान मजबूत तकनीक और धीमी पिचों पर धैर्य से बल्लेबाजी करने की थी। धोनी और कोहली के दौर में भी टीम ने घरेलू मैदान पर दबदबा कायम किया, लेकिन चौथी पारी की कमजोरी तब भी नहीं बदली।