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धर्म डेस्क। आज से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो चुका है। अगले नौ दिनों तक देवी के सभी नौ स्वरूपों की अलग-अलग दिन आराधना की जाएगी। इस दौरान व्रती पूरे संयम हुए नियम का पालन करते हैं। पुरे समय माता का जाप करते हैं। देवी भागवत पुराण में नवरात्रि में व्रत करने वाले लोगों के लिए पूजापाठ के साथ ही नवरात्रि की व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना अनिवार्य बताया गया है। कथा के बिना नवरात्रि व्रत की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। नवरात्रि व्रत कथा का पाठ माता के सिंहासन के समक्ष बैठकर करने का विधान है।

नवरात्रि व्रत कथा इस प्रकार है - एक समय की बात है। देव गुरु बृहस्पतिजी सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी से चैत्र एवं आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र व्रत और उत्सव के बारे में विस्तार से बताने का आग्रह किया। ब्रह्माजी ने प्राणियों के हित में बृहस्पतिजी को नवरात्रि व्रत कथा और उसके माहात्म्य के बारे में बताया। ब्रह्माजी ने कहा, हे देवगुरु देवी दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करने वाले मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण मनोरथ को सिद्ध करने वाला है। इसके करने से पुत्र, धन, विद्या, सुख एवं निरोगी काया की प्राप्ति होती है। इस नवरात्र व्रत को नहीं करने वाले मनुष्य नाना प्रकार के दुखों को भोगता है।

ब्रह्माजी ने कहा - प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था और प्रतिदिन दुर्गा माता की पूजा करके होम किया करता। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। कन्या सुमति उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। इस पर उसके पिता ने क्रोध में कहा, हे दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया। मैं तेरा विवाह किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ करूंगा।

पिता के वचन सुन दुखी सुमति ने कहा - हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। होगा वही, जो मेरे भाग्य में लिखा है। कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है और फल देना ईश्वर के आधीन है। कन्या सुमति के निर्भय वचन सुन ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया। सुमति मन में सोचने लगी। र्भाग्य है, मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह सोचते हुए अपने पति के साथ वन में चली गई। ब्राह्मणी सुमति की दीं दशा देख देवी भगवती ने प्रगट हो सुमति से कहा - हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य प्रभाव से प्रसन्न हूं।  

इस प्रकार माता दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी सुमति ने कहा - हे मां दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा तथास्तु और पति कोढ़ से मुक्त होकर कांतिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी। उस ब्राह्मणी की स्तुति से प्रसन्न प्रसन्न होकर माता दुर्गे ने कहा - हे ब्राह्मणी! शीघ्र ही तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र उत्पन्न होगा। सुमति ने भगवती दुर्गे से नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन भी सुना।  

माता दुर्गा ने कहा - हे ब्राह्मणी! आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें। यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। शुभ मुहूर्त में घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। मेरे सभी नौ स्वरूपों की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि पूर्वक पूजा करें और पुष्पों से अर्घ्य दें। माता ने आगे बताया कि बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की, प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति और दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है इसी तरह आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।

माता दुर्गे ने आगे बताय कि इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत संपन्न होने पर नवें दिन विधिपूर्वक हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। इसी तरह आंवले से कीर्ति की, केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।

इस तरह इस विधि-विधान से होम कर आचार्य को नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार विधि पूर्वक व्रत करने से व्रती के सब मनोरथ सिद्ध होते हैं। नवरात्र के नौ दिनों में किये जाने वाले दान का कई गुना अधिक फल मिलता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार शारदीय नवरात्र का व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इस उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में कहीं भी विधि-विधान से किया जा सकता है।  

ब्रह्माजी ने कहा - हे बृहस्पतिजी इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी माता अर्न्तध्यान हो गई। इस व्रत को श्रद्धापूवर्क करने वाले लोगों को इस लोक में सुख और जीवन के बाद दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस तरह ब्रह्माजी के मुख से ये कथा सुनकर बृहस्पतिजी आनन्द से प्रफुल्लित होकर बोल पड़े - देवी भगवती की जय।       

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