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Up Kiran, Digital Desk: नेपाल की राजनीति इस समय एक नए मोड़ पर खड़ी है। अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में सुशीला कार्की ने कार्यभार संभाल लिया है, लेकिन उनके नेतृत्व को लेकर सवाल अब जनता और खासकर युवा वर्ग के बीच ऊपर उठने लगे हैं। हाल के घटनाक्रम संकेत देते हैं कि जिस आंदोलन के सहारे सत्ता परिवर्तन हुआ, अब वही आंदोलन सरकार पर दबाव बना रहा है।
जनता की उम्मीदें और निराशा
नए नेतृत्व से जनता को न्याय और स्थिरता की उम्मीद थी। लेकिन प्रधानमंत्री कार्की से मुलाकात न हो पाने और उनके मंत्रिमंडल विस्तार में आंदोलनकारियों को नज़रअंदाज किए जाने की खबरों ने लोगों में असंतोष पैदा कर दिया है। जिन परिवारों ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान अपने प्रियजनों को खोया, वे अब सीधे सरकार से संवाद चाहते थे, मगर यह संभव नहीं हो सका।
सुदन गुरुंग और युवाओं का रुख
Gen-Z आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख युवा नेता सुदन गुरुंग ने हाल ही में कठोर प्रतिक्रिया दी है। उनका मानना है कि आंदोलन की आवाज़ को अनसुना करना नए नेतृत्व की सबसे बड़ी भूल होगी। गुरुंग के संगठन ‘हामी नेपाल’ ने तख्तापलट और युवाओं को एकजुट करने में जो भूमिका निभाई थी, अब वही संगठन सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता दिख रहा है।
हिंसा और जनहानि का सवाल
इस पूरी हलचल के बीच जनता की सबसे बड़ी चिंता उन घटनाओं की है, जिन्होंने पूरे देश को हिला दिया। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में हिंसा, लूट और आगजनी की घटनाएं हुईं। आंदोलन के दौरान 72 से अधिक लोगों की जान चली गई। प्रधानमंत्री कार्की ने इन कांडों की न्यायिक जांच का आश्वासन जरूर दिया है, लेकिन सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या यह पीड़ित परिवारों के लिए पर्याप्त होगा?
सरकार की चुनौतियां
सुशीला कार्की के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि उनके सामने केवल प्रशासनिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियां भी हैं। आंदोलनकारियों का असंतोष यदि और गहराया, तो यह अंतरिम सरकार की स्थिरता पर बड़ा असर डाल सकता है। युवाओं का समर्थन पाने में नाकाम रहने की स्थिति में नई सरकार का सफर और भी कठिन हो जाएगा।