Up Kiran, Digital Desk: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 11 साल के लंबे और दूरदर्शी कार्यकाल में भारत की रक्षा नीति और क्षमता को नया आकार दिया है। उनके नेतृत्व में देश ने रक्षा क्षेत्र में न केवल अभूतपूर्व सुधार देखे हैं, बल्कि रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी मजबूत कदम उठाए हैं। यह यात्रा केवल सैन्य शक्ति बढ़ाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें एक समग्र दृष्टिकोण शामिल रहा है जो आंतरिक सुरक्षा से लेकर सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के विकास तक फैला है।
आत्मनिर्भरता पर ज़ोर: 'मेक इन इंडिया' की गूँज
पीएम मोदी के रक्षा दृष्टिकोण का सबसे बड़ा स्तंभ 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' की पहल रही है। इसका सीधा मकसद रक्षा आयात पर निर्भरता को कम करना और देश के भीतर ही अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों का उत्पादन बढ़ाना है। इसके लिए रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है, विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यमों (Joint Ventures) को बढ़ावा दिया गया है, और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश बढ़ाया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज भारत लड़ाकू विमानों, पनडुब्बियों, तोपखानों और मिसाइल प्रणालियों जैसे जटिल उपकरणों का उत्पादन स्वयं करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी का समावेश
पिछले 11 सालों में भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। नई तकनीकों, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा और ड्रोन तकनीक को रक्षा क्षेत्र में शामिल किया गया है। सेना, नौसेना और वायुसेना को आधुनिक हथियारों और प्रणालियों से लैस किया गया है, जिससे उनकी मारक क्षमता और युद्ध लड़ने की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
रक्षा निर्यात में बढ़ोतरी और वैश्विक साख
आत्मनिर्भरता के साथ-साथ, भारत अब एक प्रमुख रक्षा निर्यातक के रूप में भी उभर रहा है। पहले जो देश हथियारों का आयात करता था, आज वह कई मित्र देशों को रक्षा उपकरण बेच रहा है। यह न केवल हमारी विनिर्माण क्षमता का प्रमाण है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती साख और रणनीतिक स्वायत्तता को भी दर्शाता है।
सीमावर्ती बुनियादी ढाँचा और आंतरिक सुरक्षा
रक्षा सुधारों के अलावा, पीएम मोदी सरकार ने देश की सीमाओं को मजबूत करने के लिए भी बड़े पैमाने पर काम किया है। दुर्गम और संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का तेजी से निर्माण किया गया है, जिससे सेना की आवाजाही और रसद आपूर्ति में सुधार हुआ है। इसके साथ ही, आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने, आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए भी निर्णायक कदम उठाए गए हैं।
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