Up Kiran, Digital Desk: भारत की महंगाई के मोर्चे पर एक बहुत ही दिलचस्प और थोड़ी राहत देने वाली ख़बर सामने आई है। थोक मूल्य सूचकांक, जिसे हम 'डब्ल्यूपीआई महंगाई' (WPI inflation) कहते हैं, वह अक्टूबर 2025 में और गिर गया है। ये सीधे 'माइनस 1.21 प्रतिशत' पर पहुँच गया है, जो एक और मजबूत संकेत है कि कीमतों का दबाव कुछ कम हो रहा है। सरल शब्दों में कहें तो, उद्योगपतियों या थोक व्यापारियों के लिए चीज़ें एक साल पहले के मुकाबले इस अक्टूबर में सस्ती हुई हैं।
इसका मतलब क्या है? जब डब्ल्यूपीआई माइनस में होता है, तो इसका सीधा सा अर्थ ये है कि थोक बाजार में उत्पादों की कीमतें पिछले साल अक्टूबर की तुलना में इस साल अक्टूबर में कम हो गई हैं। यह लगातार दूसरा महीना है जब थोक महंगाई दर नकारात्मक रही है। सितंबर में यह 0.13% थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस गिरावट की मुख्य वजह खाने-पीने की चीज़ें, कच्चे पेट्रोलियम, बिजली, खनिज तेल, और कुछ धातुओं के उत्पादन की लागत में कमी आना है।
हालांकि, यह सुनने में अच्छा लगता है कि कीमतें गिर रही हैं, पर बहुत ज़्यादा समय तक थोक स्तर पर कीमतों का घटना, यानी 'अपस्फीति' (deflation), कभी-कभी चिंता का विषय भी हो सकता है। इसका यह मतलब हो सकता है कि बाजार में उत्पादों की मांग उतनी मजबूत नहीं है, और उद्योगपतियों को अपनी चीज़ें बेचने के लिए कीमतें कम करनी पड़ रही हैं। हालांकि, यह अभी अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है क्योंकि इससे कंपनियों के लिए कच्चे माल और उत्पादन की लागत कम होती है।
यह आंकड़ा दर्शाता है कि सप्लाई साइड पर कीमतों में स्थिरता बनी हुई है, और वैश्विक कमोडिटी प्राइसेज़ में नरमी का सीधा प्रभाव घरेलू बाजार पर दिख रहा है। अच्छी बात ये है कि थोक महंगाई में कमी के साथ-साथ, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा महंगाई दर भी अक्टूबर में घटकर 0.25 प्रतिशत रह गई है, जो वर्तमान सीपीआई सीरीज का सबसे निचला स्तर है। यह जीएसटी दर में कटौती के असर के कारण हुआ है, जिससे कई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम हुई हैं।
कुल मिलाकर, यह डेटा दिखाता है कि भारत में फिलहाल थोक स्तर पर कीमतों में बढ़ोत्तरी थमी हुई है, और एक तरह से कमी ही देखी जा रही है। यह उम्मीद देता है कि इसका असर धीरे-धीरे ग्राहकों तक भी पहुंचे और उन्हें भी कुछ और राहत मिले। आने वाले समय में ये देखना दिलचस्प होगा कि यह ट्रेंड कितना टिकाऊ रहता है और इसका हमारे पूरे आर्थिक माहौल पर क्या प्रभाव पड़ता है।



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