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Up Kiran, Digital Desk:  जरा सोचिए, जिस प्लास्टिक की बोतल को आप कचरा समझकर फेंक देते हैं, उसी से आपकी गाड़ी चल सके तो कैसा रहेगा? यह कोई सपना नहीं, बल्कि हकीकत है जिसे भारत के वैज्ञानिक सच कर दिखा रहे हैं। इस कमाल को देखकर देश के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, हरदीप सिंह पुरी भी हैरान रह गए।

हाल ही में मंत्री हरदीप पुरी बेंगलुरु के पास देवनगुंथे में बने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL) के हरे-भरे रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) सेंटर पहुंचे। वहां उन्होंने जो कुछ देखा, उसे उन्होंने भारत के 'आत्मनिर्भर' और 'स्वच्छ ऊर्जा' के भविष्य की झलक बताया।

कचरे से निकलेगा 'सोना', मंत्री भी हुए प्रभावित

इस रिसर्च सेंटर में HPCL के वैज्ञानिक ऐसे-ऐसे कमाल के काम कर रहे हैं, जिनके बारे में सुनकर कोई भी दंग रह जाए। मंत्री जी यहां की प्रयोगशालाओं में घूमे और उन टेक्नोलॉजी को अपनी आंखों से देखा जहां बेकार चीजों को कीमती ऊर्जा में बदला जा रहा है।

उन्होंने सबसे ज्यादा तारीफ उस तकनीक की, जिसमें सिंगल-यूज प्लास्टिक जैसे बेकार कचरे का इस्तेमाल करके 'ग्रीन हाइड्रोजन' बनाया जा रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन माना जाता है, जिससे चलने वाली गाड़ियों से धुआं नहीं निकलता और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता।

मंत्री पुरी ने कहा, "यह सिर्फ एक लैब नहीं है, यह भारत के उज्ज्वल भविष्य की तस्वीर है। हमारे वैज्ञानिक जिस तरह से कचरे को दौलत में बदल रहे हैं, उससे हमें ऊर्जा के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यह प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' के सपने को साकार करने जैसा है।"

क्या है HPCL के इस 'जादुई' सेंटर में?

यह रिसर्च सेंटर कोई मामूली जगह नहीं है। यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा का एक बड़ा किला है।

यहां के वैज्ञानिक अब तक 335 पेटेंट फाइल कर चुके हैं, यानी उन्होंने 300 से भी ज्यादा नए आविष्कार किए हैं।

यहां बेकार प्लास्टिक से न सिर्फ हाइड्रोजन, बल्कि मोम (wax) और तेल भी बनाने की तकनीक विकसित की गई है।

पराली और खेती के दूसरे कचरे से इथेनॉल बनाने पर भी यहां काम हो रहा है, जिससे पेट्रोल में मिलावट कर प्रदूषण कम किया जा सकेगा।

यह रिसर्च सेंटर भारत के उस बड़े लक्ष्य का हिस्सा है, जिसके तहत भारत 2070 तक 'नेट जीरो' यानी कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना चाहता है। हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि जब हमारे पास HPCL जैसे संस्थान हैं, तो हमें यकीन है कि भारत अपने इन लक्ष्यों को समय से पहले ही हासिल कर लेगा।

यह दिखाता है कि भारत अब सिर्फ दूसरे देशों की तकनीक पर निर्भर नहीं है, बल्कि खुद ऐसे रास्ते खोज रहा है जो न सिर्फ देश के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद होंगे।

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