धर्म डेस्क। सनातन धर्म-परंपरा में अश्विन महीने की अमावस्या का विशेष महत्व है। इसे पितृ मोक्ष अमावस्या एवं सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। अमावस्या के दिन ही पितृपक्ष का समापन हो जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन ज्ञात और अज्ञात पितरों को विदा किया जाता है। अपने वंशजों से सम्मान पाकर पितृ प्रसन्न और संतुष्ट होकर पितृलोक लौटते हैं। अमावस्या के दिन जिन पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती उनका भी श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि किया जाता है।
इस साल सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर को है। इस दिन सूर्य ग्रहण भी लगेगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन अमावस्या या पितृ अमावस्या एक अक्टूबर को रात 9:39 पर प्रारंभ होगी और 2 व 3 अक्टूबर की मध्यरात्रि 12:18 पर समाप्त होगी। गरुड़ पुराण में सर्वपितृ अमावस्या के महत्व का वर्णन किया गया है।
गरुण पुराण के अनुसार पितृ अमावस्या के दिन विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। पितर अपने वंशजों को अपार सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं, जो जल्द ही फलित होता है। यदि पितर अतृप्त होकर पितृ लोक लौटते हैं तो परिवार को पितृ दोष लगता है और परिवार में नाना प्रकार की परेशानियां व गरीबी आ जाती है। इसलिए सर्व पितृ अमावस्या के दिन ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध-तर्पण अवश्य करना चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या पर गरुड़ पुराण का पाठ करना या सुनना चाहिए। पंचबलि कर्म अर्थात गाय, कुत्ता, कौए, देव और चीटियों के लिए अग्राशन निकालें। अपनी सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त दान आदि करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। अमावस्या के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितृ अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
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