
नई दिल्ली, 15 मई 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगते हुए 14 महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल अदालत के समक्ष रखे हैं। इन सवालों का केंद्र राज्यपाल की विधायी भूमिका, राष्ट्रपति की शक्तियां, न्यायिक समीक्षा की सीमाएं और विधेयकों के कानून बनने की प्रक्रिया को लेकर है।
मुख्य सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट किसी विधेयक को पारित करने या उस पर निर्णय लेने की कोई निश्चित समयसीमा तय कर सकता है? यह प्रश्न अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने की प्रवृत्ति के संदर्भ में सामने आया है। राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या विधेयकों पर निर्णय लेने में राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं या उन्हें स्वतंत्र विवेक का अधिकार है?
इसके साथ ही यह भी पूछा गया है कि क्या अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को प्राप्त संरक्षण उनके द्वारा लिए गए फैसलों को न्यायिक जांच से बाहर कर देता है? राष्ट्रपति ने यह स्पष्टता भी चाही है कि क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए निर्णयों को अदालत समयसीमा के भीतर तय करने का निर्देश दे सकती है?
एक अहम बिंदु यह भी है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट ऐसी व्यवस्था कर सकता है जो कानून या संविधान के किसी मौजूदा प्रावधान से भिन्न हो? और क्या सुप्रीम कोर्ट पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ में ही ऐसे संवैधानिक प्रश्नों पर सुनवाई करे?
इसके अलावा, राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि क्या न्यायालय किसी विधेयक की विषयवस्तु पर, उसके कानून बनने से पहले ही, फैसला सुना सकता है?
इन सवालों से यह स्पष्ट होता है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक भूमिकाओं को लेकर गहराई से पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की राय पर टिकी हैं, जो देश की विधायी प्रक्रिया और संघीय ढांचे पर दूरगामी प्रभाव डाल सकती है।
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