
Up Kiran, Digital Desk: पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में चल रही अशांति और बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए, वहाँ लागू राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है। संसद ने इस विस्तार को मंजूरी दे दी है, हालांकि यह निर्णय सत्ताधारी NDA गठबंधन के कुछ विधायकों के विरोध के बावजूद लिया गया है, जिसने इस मुद्दे पर आंतरिक मतभेद को उजागर किया है।
मणिपुर में हिंसा और जातीय संघर्ष के कारण स्थिति नियंत्रण से बाहर होने के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लागू किया था। यह विस्तार ऐसे समय में आया है जब राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के प्रयास जारी हैं, लेकिन जमीन पर स्थिति अभी भी बेहद संवेदनशील बनी हुई है।
विरोध के बावजूद मिला विस्तार: संसद में हुई बहस के दौरान, विपक्ष ने सरकार पर मणिपुर की स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। वहीं, सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के कुछ विधायकों ने भी राष्ट्रपति शासन के विस्तार का विरोध किया। उनका तर्क था कि राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल किया जाना चाहिए और राष्ट्रपति शासन से लोगों को परेशानी हो रही है। हालांकि, सरकार ने स्थिति की गंभीरता और तत्काल शांति बहाली की आवश्यकता का हवाला देते हुए इस विस्तार को आवश्यक बताया।
सरकार का कहना है कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति अभी भी ऐसी नहीं है कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार पूरी तरह से कार्य कर सके। जातीय संघर्षों के बाद से राज्य के कई हिस्सों में तनाव बरकरार है और लोगों के विस्थापित होने का सिलसिला भी जारी है। ऐसे में, केंद्र का सीधा नियंत्रण शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
आगे क्या? राष्ट्रपति शासन के इस विस्तार का मतलब है कि अगले छह महीनों तक मणिपुर का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के अधीन रहेगा। इस दौरान, केंद्र का ध्यान राज्य में शांति बहाली, विस्थापित लोगों के पुनर्वास और कानून व्यवस्था को मजबूत करने पर केंद्रित रहेगा। उम्मीद की जा रही है कि इस अवधि में सरकार राजनीतिक संवाद के माध्यम से सभी पक्षों के बीच सुलह कराने और सामान्य स्थिति बहाल करने का प्रयास करेगी, ताकि राज्य में जल्द से जल्द लोकतांत्रिक सरकार की वापसी हो सके।
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