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Up Kiran, Digital Desk: बेंगलुरु के मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है, जहाँ उन्होंने एक 20 दिन के नवजात प्रीटर्म शिशु को एक अत्यंत दुर्लभ और जीवन-घातक आंत विकार, क्रॉनिक आंत्र छद्म अवरोध (CIPO) से सफलतापूर्वक बचाया है। यह मामला भारत में बाल चिकित्सा और नवजात देखभाल की प्रगति को दर्शाता है, साथ ही उन डॉक्टरों के समर्पण को भी उजागर करता है जो सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में भी आशा की किरण लाते हैं।

यह शिशु सिर्फ 28 सप्ताह के गर्भावधि के बाद ही जन्म ले चुका था, और जन्म के कुछ ही दिनों के भीतर CIPO का निदान किया गया। यह स्थिति नवजात शिशुओं में असाधारण रूप से दुर्लभ है, जहाँ आंतों की मांसपेशियां भोजन को पचाने और आगे बढ़ाने में विफल रहती हैं। इस स्थिति में, बच्चे को गंभीर पोषण संबंधी कमियों और अन्य जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर जानलेवा साबित होती हैं।

बाल चिकित्सा गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के सलाहकार डॉ. रवि के. के नेतृत्व में मणिपाल अस्पताल की टीम ने इस नाजुक स्थिति को संभालने की चुनौती स्वीकार की। उन्होंने एक बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें अत्यंत सावधानीपूर्वक पोषण प्रबंधन और विशेषज्ञ चिकित्सा हस्तक्षेप शामिल थे। बच्चे को नसों के माध्यम से विशेष पैरेंट्रल न्यूट्रिशन दिया गया, क्योंकि उसकी आंतें सामान्य भोजन को पचाने में अक्षम थीं। यह सुनिश्चित किया गया कि उसे बढ़ने और ठीक होने के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व मिलें।

डॉक्टरों और नर्सों की टीम ने बच्चे की स्थिति की चौबीसों घंटे निगरानी की, हर छोटे बदलाव पर ध्यान दिया और उपचार योजना को उसकी लगातार बदलती आवश्यकताओं के अनुसार समायोजित किया। उनके अथक प्रयास, नवीनतम चिकित्सा ज्ञान और उन्नत तकनीकों के संयोजन से ही इस छोटे से जीव को जीवन की लड़ाई जीतने में मदद मिली।

यह सफल उपचार न केवल बच्चे और उसके परिवार के लिए एक नया जीवन लेकर आया है, बल्कि यह उन चिकित्सा पेशेवरों के अटूट संकल्प और कौशल का भी प्रमाण है जो जटिल और दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए लगातार सीमाओं को आगे बढ़ा रहे हैं। यह कहानी भारत में नवजात चिकित्सा देखभाल की क्षमता और चिकित्सा उत्कृष्टता की एक चमकती मिसाल पेश करती है।

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