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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका और रूस के राष्ट्राध्यक्षों के बीच हुई हालिया मुलाकात भले ही किसी ठोस समझौते के बिना खत्म हो गई हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की नजर में यह बैठक मास्को के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत बनकर उभरी है। यूक्रेन में लंबे समय से जारी संघर्ष के बीच यह पहली बार था जब दोनों नेता आमने-सामने बैठे और तीन घंटे तक बंद कमरे में चर्चा की।
बैठक का नतीजा क्या निकला?
बैठक के बाद दोनों ही राष्ट्राध्यक्ष मीडिया के सामने तो आए, लेकिन उनके जवाब अपेक्षित स्पष्टता से दूर थे। आम तौर पर बेबाक बयानों के लिए पहचाने जाने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने भी गोल-मोल बातें कीं और कहा कि वे जल्द ही नाटो और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बातचीत के बाद अपनी स्थिति साफ करेंगे। व्लादिमीर पुतिन ने भी यही रुख अपनाया और मीडिया को ठोस जानकारी देने से बचते नजर आए।
रूस की ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ काम कर गई?
बैठक से पहले और दौरान जो दृश्य सामने आए, उन्होंने रूस की एक अलग ही रणनीति को उजागर किया। पुतिन के स्वागत में खुद ट्रंप का रेड कार्पेट पर पहुंचना, सैन्य विमानों की उड़ान और गर्मजोशी से किया गया अभिवादन – इन सबने यह संकेत दिया कि रूस अब भी कूटनीतिक रूप से ताकतवर खिलाड़ी बना हुआ है।
पुतिन केवल एक राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल के साथ नहीं, बल्कि व्यापारिक और आर्थिक विशेषज्ञों की पूरी टीम के साथ अमेरिका पहुंचे थे। इसका संकेत साफ था – रूस केवल युद्ध या सुरक्षा नहीं, बल्कि व्यापारिक सौदों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
ट्रंप और व्यापार, पुतिन की समझदारी
डोनाल्ड ट्रंप के अब तक के कार्यकाल को देखें तो वह वैश्विक राजनीति में व्यापारिक समीकरणों को प्राथमिकता देने वाले नेता माने जाते रहे हैं। पुतिन ने इसी सोच को भांपते हुए अपनी बातचीत को रणनीतिक लाभ और संभावित डील की भाषा में ढालने की कोशिश की।
पुतिन का यह कहना कि “यूक्रेन की सुरक्षा अहम है और हम इसके लिए मिलकर काम करने को तैयार हैं” दरअसल एक साफ संकेत है कि वह नाटो की मौजूदगी को यूक्रेन में बर्दाश्त नहीं करना चाहते। वह सुरक्षा की गारंटी की आड़ में पश्चिमी गठबंधन को दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं।
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