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Up Kiran, Digital Desk: बिहार चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वोट चोरी और SIR जैसे मुद्दों को लेकर जनता को आगाह किया। उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में 25 लाख वोटों की हेराफेरी हुई और यही तरीका बिहार में भी अपनाया जा सकता है। राहुल ने युवाओं से अपील की कि वे अपने भविष्य को लेकर सतर्क रहें। उनका मकसद था लोगों को यह समझाना कि लोकतंत्र खतरे में है।

हरियाणा से बिहार तक एक ही चिंता

राहुल गांधी ने पहले कर्नाटक और फिर हरियाणा में वोटिंग प्रक्रिया पर सवाल उठाए। इसके बाद उन्होंने बिहार में वोटर अधिकार यात्रा शुरू की, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इस यात्रा में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी उनके साथ नजर आए। राहुल ने रैलियों में बार-बार वोट चोरी का मुद्दा उठाया, लेकिन महागठबंधन ने इसे प्रचार का मुख्य हिस्सा नहीं बनाया।

तेजस्वी की प्राथमिकताएं कुछ और

तेजस्वी यादव ने चुनाव प्रचार में रोजाना कई रैलियां कीं, जिनमें उन्होंने अपराध, रोजगार, पलायन और महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात की। आरजेडी के कुछ नेताओं का मानना है कि वोट चोरी जैसे आरोपों पर जरूरत से ज्यादा जोर देना पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है। ऐसे समय में जब जनता बुनियादी समस्याओं पर ध्यान चाहती है, राहुल गांधी ने चुनाव आयोग में औपचारिक शिकायत दर्ज किए बिना ही आरोपों को हवा दी।

वोटर कार्ड विवाद ने उठाए सवाल

राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि ब्राजील की एक मॉडल ने हरियाणा में 22 बार वोट डाला। उन्होंने तस्वीरें दिखाकर कहा कि महिला ने अलग-अलग नामों से वोटिंग की। इस दावे के बाद पिंकी नाम की एक महिला सामने आई, जिसने बताया कि दिखाए गए वोट कार्ड में से एक उसका है और उसने सही तरीके से वोट डाला था। बस तस्वीर गलती से किसी और की छप गई थी। इससे यह सवाल उठता है कि क्या राहुल का दावा पूरी तरह सही था।

क्या असर पड़ा जनता पर?

राहुल गांधी की रणनीति ने कुछ हद तक लोगों का ध्यान खींचा, लेकिन महागठबंधन की चुनावी प्राथमिकताएं अलग थीं। तेजस्वी यादव ने जमीनी मुद्दों पर फोकस किया, जबकि राहुल ने सिस्टम की खामियों को उजागर करने की कोशिश की। सवाल यह है कि क्या वोट चोरी का नैरेटिव जनता को प्रभावित कर पाया या यह सिर्फ एक राजनीतिक हथियार बनकर रह गया।