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Up Kiran, Digital Desk: जब सवाल धर्म के नहीं, समाज के जख्मों पर हों, तब चुप्पी महज़ एक खामोशी नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ बन जाती है। एक ऐसा ही मोड़ तब देखने को मिला, जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और कथावाचक अनिरुद्धाचार्य आमने-सामने आए।

लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर हुई एक संक्षिप्त मुलाकात अब देशभर में बहस का मुद्दा बन गई है। इस मुलाकात का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें अखिलेश यादव धार्मिक प्रवचनकर्ता अनिरुद्धाचार्य से एक सीधा और असहज सवाल पूछते हैं—“श्रीकृष्ण का जन्म किस कुल में हुआ?”

यह सवाल जितना सरल दिखता है, उतना ही गहरा था। जवाब में आई चुप्पी ने न केवल संवाद की दिशा बदल दी, बल्कि इस मुलाकात को एक वैचारिक संघर्ष में तब्दील कर दिया।

विचारों की टकराहट या सामाजिक सवालों की गूंज?

वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि सवाल पूछे जाने पर अनिरुद्धाचार्य कुछ पल के लिए असहज हो जाते हैं और कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाते। यह चुप्पी अखिलेश यादव के लिए काफी थी। वह तीखे लहजे में कहते हैं—“बस यहीं से हमारा और आपका रास्ता अलग हो गया।”

इसके बाद वे एक और टिप्पणी करते हैं जो पूरे घटनाक्रम का केंद्र बन गई है—“इसलिए आइंदा किसी को शूद्र मत कहना।” यह कथन न केवल धार्मिक वर्ण व्यवस्था पर एक सीधा प्रहार था, बल्कि उस मानसिकता पर भी सवाल था जो आज भी जातीय भेदभाव को जायज़ ठहराने की कोशिश करती है।

सोशल मीडिया पर मिली मिश्रित प्रतिक्रियाएं

इस वीडियो के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। कुछ लोग अखिलेश यादव की साहसिकता की सराहना कर रहे हैं, तो वहीं कुछ वर्ग इसे राजनीति में धर्म के हस्तक्षेप के रूप में देख रहे हैं।

कई उपयोगकर्ताओं ने सवाल उठाया कि अगर धर्म के नाम पर ज्ञान बांटने वाले कथावाचकों के पास ऐसे बुनियादी सवालों का उत्तर नहीं है, तो वे किस आधार पर समाज को मार्गदर्शन दे रहे हैं? वहीं, कुछ लोगों ने अखिलेश यादव के सवाल को जानबूझकर किया गया राजनीतिक दांव बताया।

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