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Up Kiran, Digital Desk: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि वह अब इन याचिकाओं की संख्या नहीं बढ़ाने जा रहे हैं, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया को संभालने में मुश्किल पैदा कर सकता है।
13 नई याचिकाओं को खारिज किया
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर चल रहे विवाद ने उच्चतम न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है। जब इन याचिकाओं के वकीलों ने अदालत से आग्रह किया कि उनकी याचिकाओं पर भी विचार किया जाए, तो पीठ ने बिना देर किए यह स्पष्ट कर दिया कि याचिकाओं की संख्या बढ़ाना अब संभव नहीं है। उन्होंने कहा, "ये याचिकाएं बढ़ती रहेंगी, और इन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा।" इसके बाद, याचिकाकर्ताओं को मुख्य याचिकाओं में हस्तक्षेप करने का विकल्प दिया गया।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम क्या है?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 एक नया कानून है जिसे संसद ने 5 अप्रैल 2025 को पारित किया। इस कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में बहस और मतदान के बाद मंजूरी मिली, जिसमें कुछ प्रावधानों को लेकर तीव्र विरोध भी हुआ। इसके बावजूद, यह कानून राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद आधिकारिक रूप से लागू हो गया है।
कोर्ट में लंबी सुनवाई की तैयारी
केंद्रीय सरकार ने अदालत में यह दावा किया है कि वक्फ कानून संसद द्वारा उचित विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया था, और इसे लेकर किसी प्रकार की स्थगन या रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने इस संशोधन को बचाते हुए 1,332 पृष्ठों का हलफनामा दायर किया, जिसमें सरकार ने कानून की संवैधानिकता का समर्थन किया। मंत्रालय का यह भी कहना था कि कुछ लोग इस कानून को लेकर "शरारतपूर्ण झूठी कहानी" फैला रहे हैं।
क्या है याचिकाओं का मुख्य मुद्दा
यहां पर कई प्रमुख संगठनों और व्यक्तियों ने इस संशोधित वक्फ अधिनियम को चुनौती दी है। इनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलमा-ए-हिंद, और मुस्लिम एडवोकेट्स एसोसिएशन जैसे नाम शामिल हैं। इन याचिकाओं में यह आरोप लगाया गया है कि इस अधिनियम के कुछ प्रावधान संविधान के खिलाफ हैं और मुस्लिम समाज की धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं।
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