Up Kiran, Digital Desk: हमारी संस्कृति में रिश्तें कितने मायने रखते हैं, ये हम सब जानते हैं. ये रिश्ते सिर्फ जीवित लोगों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उन पूर्वजों के लिए भी हैं जो आज हमारे बीच नहीं हैं. पितृ पक्ष उन्हीं पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति अपना सम्मान जाहिर करने का समय होता है, और इस पक्ष का सबसे आखिरी और सबसे ज़रूरी दिन होता है 'सर्व पितृ अमावस्या'.
क्या है इस दिन का असली मतलब?
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, 'सर्व पितृ' यानी 'सभी पितर'. यह दिन उन सभी पूर्वजों को समर्पित है, जिनकी मृत्यु की तिथि हमें याद नहीं है या किसी कारण से हम उनके लिए श्राद्ध नहीं कर पाए. यह पितृ पक्ष का आख़िरी मौका होता है, जब हम अपने सभी ज्ञात और अज्ञात पूर्वजों को एक साथ याद करके उनके प्रति अपना आभार व्यक्त कर सकते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद हमारे परिवार पर बना रहता है.
कैसे करें अपने पूर्वजों को याद?
इस दिन को मनाने का तरीका बहुत सरल और भावपूर्ण है.
सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर के दक्षिण दिशा में एक सफ़ेद कपड़ा बिछाकर अपने पूर्वजों की तस्वीर रखें. उन्हें फूल माला चढ़ाएं और तिल के तेल का दीपक जलाएं.
इसके बाद पूरी श्रद्धा से उनके लिए भोजन बनाएं. अक्सर इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा है. माना जाता है कि ब्राह्मणों को कराया गया भोजन सीधे हमारे पितरों तक पहुंचता है. अगर यह संभव न हो, तो आप किसी जरूरतमंद को भी भोजन करा सकते हैं या गाय, कौवे और कुत्ते के लिए भोजन का अंश निकाल सकते हैं. हमारी परंपरा में इन जीवों को पितरों का रूप माना गया है.
शाम के समय, घर के बाहर दक्षिण दिशा में एक दीपक ज़रूर जलाएं. यह दीपक हमारे पूर्वजों को रास्ता दिखाने और उन्हें विदा करने का प्रतीक है.
यह दिन किसी आडम्बर या दिखावे का नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और यादों का है. जब हम दिल से अपने पूर्वजों को याद करते हैं, तो वे किसी न किसी रूप में हमें अपना आशीर्वाद ज़रूर देते हैं.
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