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Up Kiran, Digital Desk: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और पाकिस्तान का साथ अब किसी अंतहीन आर्थिक कहानी जैसा दिखने लगा है। जहाँ एक तरफ IMF पाकिस्तान (Pakistan) को भारी मात्रा में ऋण (Loans) और आर्थिक मदद देता है, वहीं दूसरी तरफ अब ये सामने आ रहा है कि ये पैसा वहां की अर्थव्यवस्था (Economy) को स्थिर करने के बजाय, उसे एक ऐसे कर्ज़ के 'चक्र' (Cycle of Debt) में फंसा रहा है, जिसका अंत मुश्किल दिखता है।

हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि पाकिस्तान लगातार पैसा तो ले रहा है, लेकिन उसका उपयोग अपनी आर्थिक अस्थिरता (Economic Instability) को दूर करने या बुनियादी सुधारों (Fundamental Reforms) में नहीं कर रहा है।

समस्या कर्ज़ चुकाने की नहीं, आदत की है

रिपोर्ट साफ़-साफ़ बताती है कि पाकिस्तान को मिलने वाली ये आर्थिक मदद एक वित्तीय दुष्चक्र (Financial Vicious Cycle) बन गई है। जब कर्ज़ लिया जाता है, तो उसे आर्थिक सुधार के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में उस पैसे की ज़रूरत ही न पड़े। लेकिन पाकिस्तान इसका इस्तेमाल केवल दो चीज़ों के लिए कर रहा है:

पुरानी देनदारियाँ चुकाना: यानी एक कर्ज़ को चुकाने के लिए तुरंत दूसरा कर्ज़ लेना।

सरकारी सिस्टम को चलाना: देश को चलाने के लिए रोज़मर्रा के सरकारी ख़र्चों को पूरा करना, न कि भविष्य की कमाई बढ़ाने वाले क्षेत्रों में निवेश करना।

रिपोर्ट में कई जगहों पर वित्तीय गड़बड़ी (Financial Discrepancies) और फंड के इस्तेमाल में पारदर्शिता (Transparency) की कमी का ज़िक्र किया गया है। इसका मतलब है कि जहाँ पैसा जा रहा है, उसकी सही मॉनिटरिंग (Monitoring) और हिसाब (Accountability) नहीं रखा जा रहा है।

बड़ी चिंता का कारण: आर्थिक बीमारी का इलाज नहीं

IMF कर्ज़ के साथ कई तरह की शर्तें (Conditions) रखता है— जैसे राजकोषीय घाटा कम करना, कर (Tax) बेस बढ़ाना और बिजली-पेट्रोल की सब्सिडी कम करना। इन सभी कदमों का मकसद देश की आर्थिक बुनियाद को मज़बूत करना होता है। लेकिन, इस रिपोर्ट के खुलासे से ये लग रहा है कि पाकिस्तान केवल ऊपर-ऊपर से इन शर्तों को मानकर पैसा उठा लेता है, जबकि जड़ की बीमारी को ठीक नहीं करता।

जब तक कोई भी देश अपनी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ (Sustainable) और पारदर्शी (Transparent) नहीं बनाएगा, तब तक अंतर्राष्ट्रीय मदद किसी भी हालत में एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता। IMF और अन्य वैश्विक ऋणदाता (Global Lenders) शायद यही देखना चाहते हैं कि क्या पाकिस्तान की सरकार केवल कर्ज़ मांगने की इस ख़राब आदत को बदल पाएगी या नहीं।