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परवीन बाबी और शबाना आजमी—दोनों ही नाम 70 और 80 के दशक के हिंदी सिनेमा की चमकती सितारों में गिने जाते हैं। एक तरफ परवीन बाबी अपनी ग्लैमरस छवि और गहरी आंखों वाली मासूमियत के लिए मशहूर थीं, तो वहीं शबाना आजमी को उनके गंभीर और कलात्मक अभिनय के लिए जाना जाता था। दोनों ने एक साथ 'अमर अकबर एंथनी' और 'ज्वालामुखी' जैसी फिल्मों में काम किया, लेकिन पर्दे के पीछे परवीन बाबी की जिंदगी एक गहरे अकेलेपन और मानसिक संघर्ष से भरी हुई थी, जिसे अब शबाना आजमी ने हाल ही में याद किया।

शबाना आजमी की आंखों के सामने बिखरीं परवीन बाबी

फिल्मफेयर के यूट्यूब चैनल पर बातचीत के दौरान शबाना आजमी ने बताया कि किस तरह उन्होंने परवीन बाबी को धीरे-धीरे मानसिक रूप से टूटते देखा। उन्होंने कहा, “हम 'ज्वालामुखी' की शूटिंग कर रहे थे। एक दिन परवीन अचानक सेट पर झूमर की ओर इशारा करते हुए जोर-जोर से चिल्लाने लगीं, ‘ये झूमर मेरे ऊपर गिरने वाला है।’ यह पहली बार था जब मुझे महसूस हुआ कि कुछ बहुत असामान्य हो रहा है।”

शबाना ने बताया कि परवीन का व्यवहार धीरे-धीरे क्रू के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था। वे बेहद कम खाती थीं—“दो अंगूर खाकर कहती थीं कि अब मेरा पेट फट जाएगा।” सेट पर मौजूद सभी लोग इस बदलाव को महसूस कर रहे थे, लेकिन उस वक्त मेंटल हेल्थ पर बात करना आम नहीं था।

जीनत अमान के साथ हुई असहज मुठभेड़

शबाना आजमी ने एक और घटना साझा की जिसमें परवीन बाबी ने मेकअप सेशन के दौरान अभिनेत्री जीनत अमान को बेहद अजीब नज़रों से देखा। शबाना के अनुसार, यह उस मानसिक परेशानी का एक और संकेत था जिससे परवीन जूझ रही थीं। उन्होंने कहा, “वह गहरी बातों में दिलचस्पी रखती थीं, किताबें पढ़ती थीं, लेकिन साथ ही वो एक ऐसी बुद्धिमत्ता और शांति की तलाश में थीं जो उन्हें मिल नहीं रही थी।”

पैरानॉयड सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थीं परवीन बाबी

बॉलीवुड में जब परवीन बाबी की लोकप्रियता चरम पर थी, तब ही उनकी जिंदगी में मानसिक बीमारी ने दस्तक दी। वह पैरानॉयड सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थीं—a ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति को लगता है कि हर कोई उसके खिलाफ है। इस बीमारी ने उन्हें न सिर्फ फिल्मों से दूर किया, बल्कि धीरे-धीरे उन्हें समाज से भी काट दिया। कई सालों तक उन्होंने अकेलेपन में जिंदगी बिताई।

अंत बेहद अकेला और दर्दनाक रहा

2005 में जब परवीन बाबी की मौत हुई, तो यह खबर सिर्फ दुखद नहीं, बल्कि बेहद चौंकाने वाली थी। उनकी लाश तीन दिन तक उनके घर में पड़ी रही और किसी को खबर तक नहीं थी। यह उस समय की सबसे चर्चित घटनाओं में से एक बनी। इतने सालों तक हिंदी सिनेमा की चकाचौंध में रहने वाली एक अदाकारा का यूं गुमनामी में चले जाना, मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी की एक कड़वी सच्चाई को उजागर करता है।

शबाना आजमी की बातें क्यों महत्वपूर्ण हैं?

शबाना आजमी की यह बात आज के दौर में बेहद अहम मानी जानी चाहिए, जब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। उस वक्त जब इन मुद्दों पर कोई बात नहीं करता था, परवीन बाबी जैसे कलाकार अकेलेपन और भ्रम की स्थिति में खुद से जूझते रहे। शबाना की इन बातों से यह साफ है कि अगर वक्त रहते सही मदद मिलती, तो शायद परवीन की जिंदगी की कहानी कुछ और होती।

कला, प्रसिद्धि और मानसिक स्वास्थ्य

परवीन बाबी की जिंदगी इस बात का उदाहरण है कि ग्लैमर और सफलता के पीछे भी बहुत गहराई में दर्द छिपा हो सकता है। उनकी कहानी आज भी एक चेतावनी है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है। यह भी दिखाता है कि ज़रूरत के वक्त अपनों का साथ और समझ कितना महत्वपूर्ण होता है।

परवीन बाबी की विरासत

आज भी परवीन बाबी को उनके अभिनय, खूबसूरती और स्टाइल के लिए याद किया जाता है। लेकिन साथ ही, उनकी कहानी हमें यह भी सिखाती है कि ग्लैमर की दुनिया में हर मुस्कुराता चेहरा हमेशा खुश नहीं होता। परवीन बाबी अब नहीं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी से जुड़ी यह कड़वी सच्चाई हमें मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनने की प्रेरणा देती है।