img

Up Kiran, Digital Desk: आज भी जब हिंदी सिनेमा की सबसे दमदार और सच्ची अदाकाराओं की बात होती है, तो एक नाम जो सबसे पहले जहन में आता है, वह है स्मिता पाटिल. सिर्फ 31 साल की छोटी सी उम्र में दुनिया को अलविदा कह देने वाली स्मिता ने अपने छोटे से करियर में एक्टिंग की वो मिसाल कायम की, जिसे आज भी कोई छू नहीं पाया है. उनकी इसी कला और सादगी की दीवानी हैं आज की एक और बेहतरीन एक्ट्रेस, नंदिता दास.

हाल ही में नंदिता दास ने स्मिता पाटिल को याद करते हुए एक दिल छू लेने वाली श्रद्धांजलि दी और बताया कि कैसे स्मिता की 'सच्चाई' ने उन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि वह आज भी उनकी प्रेरणा हैं.

उनकी आंखों में सच्चाई दिखती थी: नंदिता दास, जो खुद अपनी सादगी और दमदार एक्टिंग के लिए जानी जाती हैं, कहती हैं कि उन्होंने हमेशा से स्मिता पाटिल में अपनी एक झलक देखी. उन्होंने बताया, "बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि मेरा चेहरा स्मिता जी से मिलता है, जो मेरे लिए एक बहुत बड़ा कॉम्प्लिमेंट है. लेकिन मेरे लिए समानता सिर्फ चेहरे की नहीं थी, बल्कि उनकी कला के प्रति सच्चाई की थी."

नंदिता बताती हैं कि स्मिता पाटिल उन एक्टर्स में से थीं जो कैमरे के सामने एक्टिंग नहीं करती थीं, बल्कि उस किरदार को असल में जीती थीं. उनकी आंखों में एक ऐसी सच्चाई और ईमानदारी झलकती थी, जो बनावटी दुनिया में बहुत कम देखने को मिलती है.

बिना मेकअप का वो सांवला चेहरा और आत्मविश्वास

नंदिता याद करती हैं कि उस दौर में जब ज्यादातर हीरोइनें गोरे रंग और ग्लैमर के पीछे भाग रही थीं, तब स्मिता पाटिल ने अपने सांवले रंग और सादगी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाया. वह कैमरे के सामने बिना झिझक के, कम से कम मेकअप में आने का साहस रखती थीं.

नंदिता कहती हैं, "उनका यही आत्मविश्वास मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित करता था. उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक एक्ट्रेस होने के लिए आपको 'परफेक्ट' दिखने की जरूरत नहीं है, बल्कि 'असली' होना जरूरी है."

वो किरदार जो समाज का आईना थे

स्मिता पाटिल ने 'मंथन', 'भूमिका', 'मिर्च मसाला' और 'अर्थ' जैसी फिल्मों में ऐसे किरदार निभाए, जो समाज की मजबूत, संघर्ष करती और  महिलाओं की कहानी कहते थे. उन्होंने कभी भी सिर्फ 'हीरोइन' बनना नहीं चाहा, बल्कि हमेशा एक 'एक्ट्रेस' बनी रहीं, जिसने अपनी कला का इस्तेमाल समाज को आईना दिखाने के लिए किया.

नंदिता दास का यह मानना है कि स्मिता पाटिल सिर्फ एक एक्ट्रेस नहीं, बल्कि एक आंदोलन थीं. एक ऐसी महिला जिसने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी और कला की दुनिया में ईमानदारी और सच्चाई की एक ऐसी विरासत छोड़ी, जो आज भी नंदिता जैसी कई एक्ट्रेस को रास्ता दिखा रही है.