
Up Kiran, Digital Desk: दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। काटने की घटनाओं और बीमारियों के प्रसार के भय के बीच, इस समस्या से निपटने के लिए स्थायी समाधानों की तलाश जारी है। ऐसे में, मुंबई और कोच्चि जैसे शहरों द्वारा अपनाए गए सफल मॉडल दिल्ली-एनसीआर के लिए एक व्यावहारिक 'ब्लूप्रिंट' प्रस्तुत करते हैं।
मुंबई का प्रभावी मॉडल: ABC और CNVR का 'शक्तिशाली' संयोजन
बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। उनका मुख्य जोर पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control - ABC) कार्यक्रमों और टीकाकरण पर है।
'पकड़ो-नसबंदी करो-टीका लगाओ-छोड़ो' (CNVR): यह मुंबई का सबसे सफल फॉर्मूला रहा है। इस प्रक्रिया के तहत, आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है, उनकी नसबंदी की जाती है, उन्हें टीकाकरण लगाया जाता है, और फिर उन्हें उसी क्षेत्र में वापस छोड़ दिया जाता है। यह न केवल उनकी आबादी को बढ़ने से रोकता है, बल्कि उन्हें बीमारियों से भी बचाता है।
सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता: मुंबई ने गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ मिलकर जन जागरूकता अभियान चलाए हैं। कुत्तों को जिम्मेदार पालतू पशु मालिक बनने के महत्व पर जोर दिया जाता है, और जानवरों को बेवजह छोड़ने या उनके प्रति क्रूरता करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाती है, जिसमें जुर्माना भी शामिल है।
कोच्चि का 'मानवीय' और 'सहभागी' दृष्टिकोण:
कोच्चि ने भी आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए ABC और टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन उनका दृष्टिकोण थोड़ा अधिक मानवीय और सहभागी रहा है।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): कोच्चि में सरकारी निकायों ने निजी संगठनों के साथ मिलकर काम किया है, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग हुआ है।
मानवीय तरीके और जागरूकता: कुत्तों को पकड़ने और प्रबंधन के लिए मानवीय तरीकों को प्राथमिकता दी जाती है। जिम्मेदार पालतू पशु स्वामित्व को बढ़ावा देने के लिए जन जागरूकता पर विशेष जोर दिया गया है।
आश्रय प्रबंधन और गोद लेना: पशु आश्रयों को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा रहा है, और गोद लेने के अभियानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि बेघर जानवरों के लिए एक स्थायी घर मिल सके।
दिल्ली-एनसीआर के लिए सबक और 'ब्लूप्रिंट':
मुंबई और कोच्चि की तुलना में, दिल्ली-एनसीआर में ABC कार्यक्रमों का कार्यान्वयन असंगत रहा है, संसाधनों की कमी है, और सार्वजनिक जागरूकता भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। इन शहरों के मॉडल से सीख लेकर दिल्ली-एनसीआर इस समस्या का समाधान कर सकता है:
निरंतर और व्यापक ABC/CNVR: यह सुनिश्चित करना कि नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम लगातार और पूरे क्षेत्र में चलाए जाएं।
कठोर कानून प्रवर्तन: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और अन्य संबंधित कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए, और गैर-जिम्मेदार पशु मालिकों को दंडित किया जाए।
जन जागरूकता में वृद्धि: जिम्मेदार पालतू पशु स्वामित्व, नसबंदी के लाभ, और आवारा पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा: स्थानीय समुदायों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन्स (RWAs) और एनजीओ को इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल किया जाए।
पर्याप्त बुनियादी ढाँचा: पशु जन्म नियंत्रण केंद्र, आश्रय गृह, और पकड़ने वाली टीमों के लिए पर्याप्त संसाधन और बुनियादी ढाँचा विकसित किया जाए।
राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्थायी वित्तपोषण: इस जटिल समस्या के समाधान के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और लगातार वित्तीय सहायता महत्वपूर्ण है।
मुंबई और कोच्चि के अनुभव दर्शाते हैं कि सही रणनीति, सामुदायिक सहयोग और सरकारी प्रतिबद्धता के साथ, दिल्ली-एनसीआर भी आवारा कुत्तों की समस्या का एक स्थायी और मानवीय समाधान खोज सकता है।
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