श्रीलंका के हंबनटोटा स्थित मटाला राजपक्षे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रबंधन की जिम्मेदारी भारत और रूस की कंपनी को दी गई है। इस निर्णय को चीन के लिए खतरा माना जा रहा है. इस एयर पोर्ट का निर्माण 209 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से किया गया है। एक वक्त में उड़ानों की कमी के चलते इसे दुनिया का सबसे वीरान हवाई अड्डा कहा जाता था। इस एयर पोर्ट का नाम पूर्व प्रेसिडेंट महिंदा राजपक्षे के नाम पर रखा गया है। महिंदा राजपक्षे के लगभग एक दशक लंबे शासन के दौरान कई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें से ये एक है।
जानकारी के अनुसार, श्रीलंका के मंत्रिमंडल ने 9 जनवरी को संभावित पक्षकारों से रुचि पत्र आमंत्रित करने की मंजूरी दी थी। तत्पश्चात, पांच प्रस्ताव प्राप्त हुए। कैबिनेट की तरफ से नियुक्त कमेटी ने भारत की शौर्य एयरोनॉटिक्स (प्राइवेट) लिमिटेड और रूस की एयरपोर्ट्स ऑफ रीजन्स मैनेजमेंट कंपनी को 30 सालों के लिए समझौते पर हस्ताक्षकर किए।
बता दें कि इस प्रोजेक्ट के लिए चीन ने उच्च ब्याज दर पर कॉमर्शियल लोन दिया। तो वहीं, एयर पोर्ट पर यात्रियों की तादाद कम होने की वजह से निरंतर उड़ानों की संख्या कम हो गई। साथ ये हवाई अड्डा पर्यावरण के लिहाज से भी बहुत संवेदनशील रहा। निरंतर घाटे में रहने के कारण हवाई अड्डे के निर्माण पर सवाल उठे। विशेषज्ञों ने कहा कि इस हवाई अड्डे का निर्माण करवाकर चीन ने श्रीलंका को एक और उधारी के जंजाल में फंसा दिया।
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