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bulldozer actions: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 सितंबर) को निर्देश दिया कि सुनवाई की अगली तारीख 1 अक्टूबर तक भारत में कहीं भी अदालत की अनुमति के बिना संपत्ति का विध्वंस नहीं होगा, मगर स्पष्ट किया कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों आदि पर किसी भी अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर न्याय' के लिए अफसरों को फटकार लगाई

इससे पहले 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए 'बुलडोजर न्याय' पर कड़ी टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति के घर पर सिर्फ इसलिए बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता क्योंकि वह किसी मामले में आरोपी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "आरोपी दोषी है या नहीं, यह तय करना अदालत का काम है। यह देश कानून से चलता है, किसी व्यक्ति की गलती की सजा उसके परिवार के खिलाफ कार्रवाई करके या उसका घर गिराकर नहीं दी जा सकती।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को नजरअंदाज नहीं कर सकती। उसने कहा कि इस तरह की कार्रवाई की इजाजत देना कानून के शासन पर बुलडोजर चलाने जैसा होगा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधाशु धूलिया और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं।

क्या माजरा था?

गुजरात के जावेद अली नामक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उसके परिवार के एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर के कारण नगर निगम की ओर से उसे उसका मकान गिराने का नोटिस दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मकान गिराने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम को नोटिस जारी कर फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

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