लखनऊ। तत्कालीन कार्यवाहक निदेशक, आयुर्वेद पाठ्यक्रम एंव मूल्यांकन प्रो सुरेश चंद्र पर अनियमितता के आरोप लगें तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। बाद में उनकी सेवा समाप्ति के आदेश भी जारी हो गए। मौजूदा निदेशक पीसी सक्सेना एक प्रकरण में चार्जशीटेड हैं। फिर भी निदेशक की कुर्सी पर विराजमान हैं। ऐसे में आयुष विभाग के कायदे-कानूनों पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर विभाग के कार्रवाई के क्या नियम हैं? एक ही तरह के मामलों में अलग-अलग रूख दिख रहा है।
आरोप लगते ही सस्पेंंड हुए थे प्रो सुरेश चंद्र
प्रो सुरेश चन्द्र पर शहीद नरेंद्र कुमार आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ में 58 फर्जी छात्रों के नियम विरूद्ध प्रवेश को अनुमोदित किए जाने का आरोप लगा था। बिना उत्तर प्रदेश आयुष काउंसलिंग के जरिए प्रवेश लिए एसआरएस आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज, आगरा के 28 फर्जी छात्रों की भी नियम विरूद्ध परीक्षा कराए जाने का प्रयास किया गया था। इस सिलसिले में डॉ. भीमराव अंबेडकर विवि आगरा को सूची भेजे जाने का आरोप था। उन्हीं आरोपों में शासन ने मई 2022 को उन्हें सस्पेंड कर दिया था। उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही संस्थित की गई थी। जांच में आरोप सही पाए गए और उन्हें सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी निदेशक की कुर्सी बरकरार
दूसरी तरफ आयुर्वेद के कॉलेजों में एडमिशन के मामले में मौजूदा निदेशक पीसी सक्सेना भी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जो किसी से छिपे नही हैं। कागजातों में बाकायदा गवाह के बयान के तौर पर उनका भ्रष्टाचार दर्ज है। उसके बाद भी वह निदेशक की कुर्सी पर आसीन हैं। अब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस सिलसिले में विभागीय मंत्री दयाशंकर मिश्रा और अपर मुख्य सचिव लीना जौहरी से जानकारी करने की कोशिश की गई। पर उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। मैसेज का भी कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ।
…क्रमशः
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