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Up Kiran, Digital Desk: भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ़ को लेकर अब न सिर्फ भारत में नाराज़गी है, बल्कि अमेरिका के भीतर भी विरोध के सुर सुनाई देने लगे हैं। अमेरिकी कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति में डेमोक्रेट सदस्यों ने ट्रंप के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे रूस के राष्ट्रपति पुतिन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि इसका भार आम भारतीयों और छोटे व्यापारियों पर पड़ेगा।

व्यापारिक दबाव में किसान और मछुआरे

पिछले हफ्ते ट्रंप प्रशासन ने भारत से होने वाले कुछ उत्पादों के आयात पर टैरिफ़ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया। इस फैसले का सीधा असर भारतीय कपड़ा उद्योग, समुद्री उत्पाद और कृषि निर्यात पर पड़ा है। भारत सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे "अनुचित और बिना सोचे-समझे उठाया गया कदम" बताया है।

इस फैसले से देश के हजारों किसान, बुनकर, मछुआरे और छोटे निर्यातक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनकी आजीविका अमेरिका जैसे बड़े बाजार पर टिकी हुई है। खासतौर पर वे छोटे उद्यम जिनके पास विकल्प सीमित हैं, इस टैरिफ़ बढ़ोतरी के चलते अपनी कमाई और बाजार दोनों खो सकते हैं।

अमेरिकी नेताओं की भी आलोचना

अमेरिका के डेमोक्रेट नेताओं ने ट्रंप के फैसले पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत पर आर्थिक दबाव बनाना यूक्रेन युद्ध को नहीं रोक सकता। उनका मानना है कि अगर रूस को रोकना है तो उसके खिलाफ सीधे और स्पष्ट कदम उठाए जाने चाहिए, न कि साझेदार देशों को निशाना बनाया जाए।

वित्त मंत्री की चेतावनी और पुतिन से उम्मीदें

इस बीच अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भारत को चेतावनी दी है कि रूसी तेल खरीद पर अगर भारत ने रुख नहीं बदला, तो द्वितीयक प्रतिबंधों में और इज़ाफा हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ट्रंप और पुतिन के बीच अलास्का में हुई हालिया मुलाकात से कुछ रास्ते निकल सकते हैं, जिसे उन्होंने “उपजाऊ वार्ता” बताया।

हालांकि, एक राहत यह है कि अमेरिका की तरफ से चीन जैसे बड़े आयातकों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत को राजनीतिक रूप से टार्गेट किया जा रहा है?

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