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Up Kiran, Digital Desk: एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी 2025 भले ही भारत के लिए नतीजों के लिहाज़ से पूरी तरह सफल न रही हो, लेकिन इस सीरीज़ ने क्रिकेट प्रेमियों को भरपूर रोमांच और कई ऐतिहासिक पल दिए। पाँच मैचों की इस प्रतिष्ठित टेस्ट श्रृंखला में भारत ने अपने बल्लेबाज़ी कौशल से पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, भले ही जीत और हार के बीच झूलते रहे।

सीरीज़ की शुरुआत लीड्स टेस्ट में हार से हुई, जिससे टीम का मनोबल थोड़ा गिरा, लेकिन बर्मिंघम में जबरदस्त वापसी ने भारतीय क्रिकेट समर्थकों में उम्मीदें जगा दीं। लंदन में तीसरे टेस्ट में फिर हार का सामना करना पड़ा, और मैनचेस्टर में खेला गया चौथा मुकाबला ड्रॉ रहा। हालांकि, इन उतार-चढ़ाव के बीच आखिरी टेस्ट में भारत ने अपने खेल से ऐसी छाप छोड़ी कि रिकॉर्ड बुक में भी दर्ज हो गया।

भारतीय बल्लेबाज़ों ने रचा नया इतिहास

सीरीज़ में भारतीय टीम ने कुल 470 बाउंड्री लगाईं—जो किसी भी टेस्ट श्रृंखला में एक टीम द्वारा बनाए गए सबसे अधिक चौके-छक्के हैं। यह आंकड़ा भारत के आक्रामक रवैये और उनके बल्लेबाज़ों की निरंतरता को दर्शाता है। हालांकि सीरीज़ जीतने का सपना अधूरा रह गया, मगर आंकड़ों की दुनिया में भारत ने अपनी मौजूदगी ज़रूर दर्ज करा दी है।

चौथे दिन के पास आते-आते भारत ने बदला मैच का रुख

ओवल में चल रहे पांचवें और अंतिम टेस्ट में भी भारत का जुझारूपन साफ दिखा। इंग्लैंड की पहली पारी को 247 रनों पर समेटने के बाद भारत ने बल्ले से कमाल किया। यशस्वी जायसवाल ने 188 रनों की शानदार पारी खेली, जिसे आकाशदीप के अहम 66 रन और जडेजा-सुंदर की फिफ्टीज़ ने मज़बूती दी। इस प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 396 रन का बड़ा स्कोर खड़ा किया और इंग्लैंड को जीत के लिए 374 रनों का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य दे डाला।

लेकिन जब इंग्लैंड बल्लेबाज़ी करने उतरा, तो शुरुआत से ही दबाव में आ गया। ज़ैक क्रॉली केवल 14 रन बनाकर सिराज का शिकार बने। चौथे दिन की समाप्ति तक बेन डकेट 34 रन पर नाबाद थे और इंग्लैंड की उम्मीदें उन्हीं पर टिकी हुई थीं।

निष्कर्ष: आंकड़े जीत की गारंटी नहीं होते

भारत की ओर से इस सीरीज़ में दिखाया गया बल्लेबाज़ी कौशल और जुझारूपन काबिले तारीफ रहा, लेकिन मैच के नतीजों ने यह भी दिखाया कि सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन और स्थिरता ज़रूरी है। एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी 2025 भारतीय टीम के लिए एक ऐसा अनुभव साबित हुई, जिसमें कई उपलब्धियां तो मिलीं, लेकिन मुकम्मल संतोष शायद नहीं।

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