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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी ने समाज पर कई तरह के प्रभाव डाले हैं, जिनका असर आम जनता की जिंदगी पर साफ दिखता है। विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इस मसले पर रविवार को खुलकर अपनी राय रखी है और संकेत दिया है कि उनकी सरकार बनने पर इस नीति की समीक्षा अवश्य की जाएगी। उनका कहना है कि इस विषय में समाज के बुद्धिजीवियों, सरकारी अधिकारियों और अन्य संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श करके ही आगे की रणनीति तय की जाएगी।

शराबबंदी का उद्देश्य जहां सामाजिक बुराइयों को कम करना था, वहीं इसके चलते सरकार को भारी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा है। राज्य का राजस्व करीब 3000 करोड़ रुपये तक घट गया है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फंड की कमी महसूस हो रही है। साथ ही, प्रतिबंध ने तस्करी और अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा दिया है, जिससे अपराध की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। पुलिस पर हमलों के मामले भी बढ़े हैं, जो शराब माफियाओं की बढ़ती ताकत को दर्शाते हैं। इन सबके बीच अब चर्चा इस बात की हो रही है कि शराबबंदी को खत्म कर सरकार पुनः इस क्षेत्र से राजस्व जुटा सके और अवैध गतिविधियों को नियंत्रित कर सके।

तेजस्वी ने सरकार पर साधा निशाना

दूसरी ओर, बिहार में बढ़ती अपराध की वारदातों पर भी तेजस्वी यादव ने सरकार को जमकर कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में अपराधी सत्ताधारी बन गए हैं। खासतौर पर दोनों उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा पर उन्होंने निशाना साधा। तेजस्वी ने कहा कि अपराध पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो रही, और यह स्थिति भयावह है दिन में खुलेआम गोलीबारी, एंबुलेंस में रेप जैसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। उनका आरोप है कि बीते एक सप्ताह में राज्य में सौ से ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं, जो अपराध की बढ़ती दर को दर्शाता है।

वहीं, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी तेजस्वी ने सरकार की पोल खोलते हुए कैग की रिपोर्ट का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार में लगभग 71 हजार करोड़ रुपये के घोटाले सामने आए हैं, जिनके खर्च का कोई ठोस हिसाब नहीं है। भ्रष्टाचार के इस बोलबाले ने बिहार की जनता को गहरा नुकसान पहुंचाया है। कैग ने भी इस मामले में सरकार को कड़ी फटकार लगाई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही। तेजस्वी ने इसे राज्य के सबसे बड़े घोटालों में से एक बताया है, जो विकास कार्यों की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।