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Up Kiran, Digital Desk: जब हम ट्रेन में सफर करते हैं, तो अक्सर खिड़की से बाहर देखते हुए पटरियों को तेजी से पीछे छूटते हुए देखते हैं. हमें एक आरामदायक और बिना झटकों वाला सफ़र अच्छा लगता है. लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि लोहे की इन पटरियों पर भारी-भरकम ट्रेन इतनी आसानी से और सुरक्षित तरीके से कैसे दौड़ती है? इसके पीछे भारतीय रेलवे के कर्मचारियों की दिन-रात की मेहनत और एक बहुत ही ज़रूरी प्रक्रिया छिपी है, जिसे 'टैंपिंग' कहते हैं.

आखिर ये टैंपिंग होती क्या है?

इसे आसान भाषा में समझते हैं. ट्रेन की पटरी के नीचे आपने पत्थर के छोटे-छोटे नुकीले टुकड़े (गिट्टी या बैलास्ट) देखे होंगे. जब भी कोई ट्रेन गुज़रती है, तो उसके वज़न और कंपन से ये गिट्टी अपनी जगह से थोड़ी खिसक जाती है. धीरे-धीरे पटरियों के नीचे का लेवल और पकड़ कमज़ोर होने लगती है.

'टैंपिंग' वही प्रक्रिया है, जिसमें ख़ास तरह की मशीनों (जिन्हें टैंपिंग मशीन कहते हैं) से इन गिट्टियों को वापस उनकी सही जगह पर टाइट करके पैक किया जाता है. ये मशीनें पटरी को थोड़ा ऊपर उठाकर कांपते हुए (vibrate करते हुए) गिट्टियों को नीचे सेट करती हैं, ताकि कोई भी गैप न बचे और पटरी को एक मज़बूत बेस मिले.

क्यों है यह प्रक्रिया इतनी ज़रूरी?

आपकी सुरक्षा के लिए: अगर पटरियों के नीचे की गिट्टी ढीली हो जाए, तो तेज़ रफ़्तार ट्रेन के गुज़रने पर पटरी अपनी जगह से खिसक सकती है. यह एक बड़े हादसे का कारण बन सकता है. टैंपिंग पटरियों को स्थिर रखती है, जिससे ट्रेन के पटरी से उतरने का ख़तरा कम हो जाता है.

आरामदायक सफ़र के लिए: जब ट्रैक एकदम लेवल पर और मज़बूत होता है, तो ट्रेन बिना झटकों के मक्खन की तरह चलती है. आपको एक आरामदायक और शांत सफ़र का अनुभव होता है.

पटरी की लंबी उम्र के लिए: नियमित टैंपिंग से पटरियों पर पड़ने वाला दबाव एक समान रहता है, जिससे उनकी उम्र बढ़ जाती है और वे जल्दी खराब नहीं होतीं.

यह काम अक्सर रात के समय या जब ट्रेनों की आवाजाही कम होती है, तब किया जाता है, ताकि आपका सफ़र बिना किसी रुकावट के चलता रहे. तो अगली बार जब आप ट्रेन में आरामदायक सफ़र का आनंद लें, तो उन अनगिनत रेल कर्मचारियों को ज़रूर याद कीजिएगा जो हमारी सुरक्षा और आराम के लिए चुपचाप पटरियों को मज़बूत बनाने का काम करते हैं