
Up Kiran, Digital Desk: जब सरकार गरीबों और पिछड़े इलाकों के विकास के लिए पैसा भेजती है, तो उम्मीद होती है कि उनकी ज़िंदगी बेहतर होगी। स्कूल बनेंगे, सड़कें बनेंगी, और उन तक वे सारी सुविधाएं पहुँचेंगी जिनसे वे अब तक दूर हैं। लेकिन जब वही पैसा असली काम में लगने के बजाय कहीं और चला जाए, तो यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि उन लोगों के भरोसे का टूटना होता है जिन्हें मदद की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
ऐसा ही एक बड़ा और गंभीर मामला आंध्र प्रदेश से सामने आया है।
क्या है पूरा मामला:देश के सरकारी खर्चों पर नज़र रखने वाली सबसे बड़ी संस्था- CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के 11 आदिवासी इलाकों में विकास का काम देखने वाली सरकारी एजेंसियों (ITDA) में लगभग 148 करोड़ रुपये के फंड के इस्तेमाल में बड़ी गड़बड़ी का शक जताया गया है।
यह पैसा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के कल्याण और उनके क्षेत्रों में स्कूल, हॉस्टल, सड़कें और सामुदायिक भवन जैसे बुनियादी ढांचे बनाने के लिए था।
कैसे हुई यह गड़बड़ी?CAG की जांच में जो सामने आया है, वो बहुत ही हैरान करने वाला है। पता चला है कि:
काम हुआ नहीं, पैसा निकल गया: कई मामलों में, कागज़ों पर तो दिखा दिया गया कि काम हो गया और पैसा भी बैंक से निकाल लिया गया, लेकिन असल में ज़मीन पर या तो काम शुरू ही नहीं हुआ, या फिर अधूरा पड़ा है।
नियमों की हुई अनदेखी: सरकारी नियम है कि किसी भी काम का पैसा तभी दिया जाएगा जब उसकी तस्वीरें (photos) सबूत के तौर पर जमा की जाएंगी। लेकिन यहाँ बिना किसी सबूत या जाँच के ही करोड़ों रुपये के बिल पास कर दिए गए।
किसका पैसा था और कहाँ जाना था?
यह पैसा किसी बड़े शहर के प्रोजेक्ट का नहीं था, बल्कि देश के उन आदिवासी भाई-बहनों के लिए था जिन्हें विकास की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। यह पैसा उन बच्चों के लिए था जिनके लिए शायद एक नया स्कूल बन सकता था, या उन गांवों के लिए जहाँ एक पक्की सड़क उनकी ज़िंदगी आसान कर सकती थी।
CAG की इस रिपोर्ट ने अब आंध्र प्रदेश के प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है और कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब यह देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है और आदिवासियों के हक़ का पैसा आखिर कहाँ गया, इसका जवाब कौन देता है