जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक दिलचस्प मोड़ आ गया है. राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के बीच की कड़वाहट कुछ देर के लिए थम गई है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. पीडीपी ने बीजेपी को रोकने के बड़े लक्ष्य के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने का ऐलान तो कर दिया है, पर इसके लिए दो बड़ी शर्तें भी रखी हैं.
क्या हैं पीडीपी की शर्तें: महबूबा मुफ्ती ने साफ कहा है कि वो नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन तभी देंगी जब उनकी दो मांगों को पूरा किया जाएगा. ये मांगें सीधे तौर पर जम्मू-कश्मीर के लोगों के हक़ से जुड़ी हैं:
लैंड राइट्स बिल: महबूबा ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद सबसे बड़ा मुद्दा ज़मीन के हक़ की रक्षा करना है. उन्होंने आरोप लगाया कि कश्मीर में कई होटलों की लीज खत्म करके उनकी नीलामी की जा रही है, जो दशकों से स्थानीय लोगों के पास थे. पीडीपी ने एक बिल पेश किया है, जिसमें स्थानीय लोगों के घरों, दुकानों और होटलों का मालिकाना हक़ उन्हें ही देने की बात है.
डेली वेजर बिल: दूसरी बड़ी शर्त उन हज़ारों दिहाड़ी मज़दूरों को पक्का करने की है, जो अलग-अलग सरकारी विभागों में 20-25 सालों से काम कर रहे हैं, लेकिन आज भी उन्हें न तो पूरी तनख्वाह मिलती है और न ही उनकी नौकरी पक्की है.
महबूबा ने कहा, "नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास सदन में बहुमत है, उन्हें बाहरी लोगों के बजाय स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए."
एकता या मजबूरी का गठबंधन?
यह पहली बार है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद दोनों बड़ी पार्टियां इस तरह साथ आई हैं. पीडीपी ने साफ़ किया कि वो एनसी उम्मीदवार शम्मी ओबेरॉय को अपना तीसरा वोट देगी ताकि बीजेपी कोई अतिरिक्त सीट न जीत पाए.
हालांकि, इस एकता के पीछे की मजबूरी और अविश्वास भी साफ़ दिखा. महबूबा मुफ्ती ने यहां तक कह दिया, "एनसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन हमारा लक्ष्य बड़ा है. जम्मू और कश्मीर के अधिकारों की रक्षा के लिए और क्योंकि इंडिया गठबंधन एक बहुत गंभीर लड़ाई लड़ रहा है, हमने उन्हें वोट देने का फैसला किया है."
कांग्रेस ने भी अपने मतभेद भुलाकर नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने का ऐलान किया है. अब देखना यह है कि क्या पीडीपी की शर्तें मानी जाती हैं और क्या यह गठबंधन बीजेपी को रोकने में कामयाब हो पाता है या नहीं.
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