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Up Kiran, Digital Desk: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 से अधिक लोगों की मौत और दर्जनों के घायल होने की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। भारत सरकार ने इस घटना को बेहद गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है।
इस हमले के बाद न केवल कूटनीतिक स्तर पर हलचल तेज हुई है, बल्कि परमाणु हथियारों को लेकर भी बहस छिड़ गई है। ऐसे समय में यह जानना जरूरी है कि क्या परमाणु हथियार वास्तव में किसी देश की सुरक्षा की गारंटी होते हैं, या फिर एक बोझ, जिसे बुद्धिमत्ता से त्याग देना ही बेहतर होता है?
इस संदर्भ में दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण है दुनिया का एकमात्र ऐसा देश, जिसने स्वयं के बनाए परमाणु बमों को नष्ट करने का ऐतिहासिक फैसला लिया।
परमाणु यात्रा की गुप्त शुरुआत और शांतिपूर्ण अंत
24 मार्च 1993 को दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति एफ.डब्ल्यू. डी क्लार्क ने विश्व समुदाय के सामने यह रहस्योद्घाटन किया कि उनके देश ने छह परमाणु हथियार गुप्त रूप से बनाए थे और उन्हें स्वेच्छा से नष्ट भी कर दिया गया है।
नष्ट क्यों किए गए बम
अमेरिका ने 1978 में एक कानून पास किया, जिसके अनुसार एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) से बाहर के देशों को कोई परमाणु तकनीक नहीं दी जा सकती थी। सोवियत संघ और अमेरिका दोनों ने 1977 में संभावित दक्षिण अफ्रीकी परमाणु परीक्षण को रोकने के लिए साथ मिलकर कदम उठाया।
दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी नीतियों के कारण वह वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ चुका था। हथियार खरीदने और सहयोग प्राप्त करने पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जा रहे थे।
डी क्लार्क के सत्ता में आने के बाद आंतरिक लोकतांत्रिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू हुई। परमाणु हथियारों को खत्म करना अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति और सहयोग हासिल करने की दिशा में एक अहम कदम था।
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