Up Kiran, Digital Desk: भारत एक ऐसा विविधतापूर्ण राष्ट्र है जिसने कई देशों और संस्कृतियों के लोगों को अपनाया और उन्हें फलने-फूलने का मौका दिया है। उनमें से एक प्रमुख समुदाय हैं पारसी जिनका औद्योगिक और सामाजिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान रहा है। जमशेदजी टाटा और रतन टाटा जैसे दिग्गज उद्यमियों की उपलब्धियाँ भारत की प्रगति का अहम हिस्सा हैं।
पारसी धर्म की जड़ें बहुत पुरानी हैं। इसका आरंभ छठी शताब्दी ईसा पूर्व में पैगंबर जेरथुस्त्र द्वारा हुआ। उस वक्त ईरान को पारस या फारस कहा जाता था और धर्म वहीं अपनी श्रेष्ठता की वजह से फल-फूल रहा था। इस धर्म को विश्व के सबसे प्राचीन एकेश्वरवादी धर्मों में गिना जाता है। इसके अनुयायी अग्नि पूजा करते हैं और मानते हैं कि मरणोपरांत आत्मा को न्याय के सामने खड़ा होना पड़ता है।
तीसरी शताब्दी ईस्वी में सासानी वंश के शासन के दौरान पारसी धर्म ने उत्तरोत्तर विकास किया। मगर 652 ईस्वी में अरब मुसलमानों के आक्रमण के बाद सासानी राज्य क्षय की ओर बढ़ा। हालात बदलने लगे धर्मांतर और जजिया कर लगना व्यवसाय पर प्रतिबंध जैसे हालात सामने आए।
पुरानी कथाओं खासकर किस्सा-ए-संजान में समय की कठिनाइयों का जिक्र मिलता है जहां पारसियों ने नए और सुरक्षित ठिकाने की तलाश शुरू की। अंततः लगभग बारह सौ साल पहले उन्होंने अपने जहाजों में सवार होकर समुद्री मार्ग से गुजरात के तट पर कदम रखा।
वर्तमान इतिहास कहता है कि जब पारसियों ने आकर स्थानीय राजा से निवास की अनुमति मांगी तो शुरुआत में उसे अनुमति नहीं मिली। मगर एक ब्राह्मण पुरोहित ने राजा को समझाया: दूध में जब चीनी मिलती है तो वह मीठा हो जाता है ठीक वैसे ही ये लोग हिंदुस्तान के लोगों के बीच समाहित हो जाएंगे। इस अलंकृत रूपक ने राजा को प्रभावित किया और उन्होंने पारसी समुदाय को बसने की इजाज़त दी। उन्होंने यह शर्त भी रखी कि वे स्थानीय संस्कृति अपनाएँ समाज के साथ मेलजोल बढ़ाएँ और पहनावे तथा भाषा में सहज बनें।
समय के साथ ये ‘जोरास्ट्रियन पारसी’ भारत में एक सफल और समृद्ध समुदाय बनकर उभरे जिसने देश की उन्नति में अपना अमूल्य योगदान दिया।
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