Up Kiran, Digital Desk: आज की दुनिया भाग रही है. फैशन हर हफ्ते बदल जाता है और मशीनों से बने कपड़े बाज़ारों में भरे पड़े हैं. इस भागदौड़ में, हम अक्सर उन चीज़ों को पीछे छोड़ देते हैं जिनमें आत्मा बसती है, जिन्हें बनाने में हाथ का हुनर और बुनकर का प्यार लगता है. ऐसी ही एक अनमोल विरासत है 'हैंड-वोवन मैसूर क्रेप साड़ी', एक ऐसा नाम जो कभी राजसी शान और सादगी का प्रतीक हुआ करता था.
एक ज़माना था, 1920 से 1940 के बीच, जब शुद्ध रेशम से बनी इन साड़ियों का हर कोई दीवाना थाइसका मुलायम एहसास, शरीर पर खूबसूरती से लिपट जाने वाला ग्रेसफुल ड्रेप, और चटख रंगों के साथ सादा डिज़ाइन, इसे हर खास मौके के लिए परफेक्ट बनाता था. लेकिन फिर मशीनों का दौर आया और इस खूबसूरत कला पर धीरे-धीरे धूल जमने लगी. हाथ से साड़ी बुनने की यह परंपरा लगभग खत्म सी हो गई.
लेकिन कहते हैं न, जड़ें कितनी भी पुरानी हों, उन्हें सही पानी मिले तो वे फिर से हरी हो जाती हैं. 'मैसूर साड़ी उद्योग' (Mysore Saree Udyog) ने ठीक यही काम किया है. उन्होंने इस खोई हुई कला को फिर से जिंदा करने का बीड़ा उठाया है.
क्या है इस वापसी की कहानी?
तेज़ फैशन के इस दौर में, मैसूर साड़ी उद्योग ने एक कदम पीछे जाकर हमारी विरासत को संभालने का फैसला किया है. वे ठीक उसी पुराने तरीके से, पारंपरिक हथकरघों (Handlooms) पर इन मैसूर क्रेप साड़ियों को फिर से बुनवा रहे हैं. यह कोई मामूली साड़ी नहीं है, इसे बनाने में 100% शुद्ध मैसूर सिल्क का इस्तेमाल किया जा रहा है
इसकी शुद्धता का प्रमाण इस बात से मिलता है कि हर साड़ी 'सिल्क मार्क' और 'हैंडलूम मार्क' सर्टिफिकेशन के साथ आती है. यह इस बात की गारंटी है कि आप जो पहन रही हैं, वह सौ फीसदी असली और हाथ से बुनी हुई है.
क्या ख़ास है इस नई कलेक्शन में?
इस रिवाइवल कलेक्शन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इसने अपनी आत्मा को नहीं खोया है.
सादगी में सुंदरता: इन साड़ियों में आज भी वही सादे और सुंदर बॉर्डर हैं.
कम लेकिन आकर्षक पैटर्न: बहुत ज़्यादा तामझाम के बजाय, मिनिमलिस्टिक पैटर्न पर ध्यान दिया गया है, जो रेशम की खूबसूरती को और निखारता है.
परफेक्ट ड्रेप: इसमें 'टर्निंग बॉर्डर्स' जैसी नई तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया है, ताकि साड़ी का ड्रेप एकदम परफेक्ट और सीमलेस आए.
मैसूर साड़ी उद्योग का कहना है, "मैसूर क्रेप साड़ी सिर्फ एक पहनावा नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक पहचान है, जिसमें हमारे बुनकरों की विरासत और कहानियां बसी हैं. इस कोशिश के जरिए, हम न केवल इस हुनर को बचाना चाहते हैं, बल्कि ग्राहकों को भारतीय कारीगरी की असली पहचान भी देना चाहते हैं.
यह सिर्फ एक साड़ी का वापस आना नहीं है, यह उस दौर की वापसी है जब कपड़ों में भी एक कहानी होती थी, एक एहसास होता था. यह हमारे बुनकरों के हुनर को एक सलाम है, जो मशीनों के शोर में कहीं खो गया था.
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