img

धर्म डेस्क। भारतीय पौराणिक कथाओं में कई दिव्य चीजों का उल्लेख है। इन्ही में से एक है कल्पवृक्ष। कल्पवृक्ष का उल्लेख पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस अलौकिक वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। जब देवता और असुर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन कर रहे थे, तब अनेक दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुई थी। इन दिव्य वस्तुओं में कल्पवृक्ष भी शामिल था। देवराज इंद्रदेव ने इस वृक्ष को स्वर्गलोक में रोपा था, जहां दिव्य वृक्ष के रूप में इसकी पूजा होती है।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों ऋग्वेद, महाभारत समेत विभिन्न पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख है। कल्पवृक्ष का एक दिव्य और पवित्र वृक्ष के रूप में बखान किया गया है। इस अलौकिक वृक्ष को सभी इच्छाओं, मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला और अमरता का प्रतीक माना गया है। कल्पवृक्ष के धरती पर आने की कथा पौराणिक कथाओं में वर्णित है। उत्तराखंड के ऋषिकेश में आज भी एक कल्पवृक्ष है, जिसका दर्शन करने लोग दूर दूर से आते हैं। यह संरक्षित वृक्ष है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपने वनवास के समय दिव्य वस्त्र, आभूषण और अन्य वस्तुएं प्राप्त करने के लिए इंद्रप्रस्थ आए थे। इंद्रप्रस्थ में उन्होंने कल्पवृक्ष को भी देखा। इस वृक्ष की दिव्यता और चमत्कारिक शक्तियों से प्रभावित होकर पांडव इसे धरती पर लाये थे।

एक अन्य कथा के अनुसार गंगा के धरती पर अवतरण के साथ कुछ दिव्य वृक्ष और पौधे भी आए थे, जिनमें कल्पवृक्ष भी शामिल था। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि व धन के देवता कुबेर ने भी कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इसे दिव्य और पुण्यदायी वृक्ष माना जाता है। आज भी सनातनी कल्पवृक्ष या कल्पतरु को पवित्र व पुज्यनीय मानते हैं। 
 

--Advertisement--