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भारत की पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे तक चली थी. तब से बीते 170 सालों में भारतीय रेलवे में आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं; लेकिन 'वंदे भारत' रेलवे ने सचमुच देश में रेलवे का चेहरा बदल दिया। पारंपरिक ट्रेनों की तुलना में पूरी तरह से 'मेक इन इंडिया' डिजाइन और निर्मित, 'वंदे भारत' ने भारतीय यात्रियों को सेमी-हाई स्पीड रेल का अनुभव दिया।

वंदे भारत सेवा के रिस्पॉन्स को देखते हुए 'वंदे भारत' में जल्द ही स्लीपर कोच की सुविधा शुरू की जाएगी. रेलवे प्रशासन लोकल, मेट्रो की तर्ज पर 'वंदे मेट्रो' शुरू करने की सोच रहा है। रेल मंत्री वैष्णव ने 100 किमी की दूरी के शहरों के बीच ब्रॉड गेज लाइनों पर यह सेवा शुरू करने पर बात कही थी।

'वंदे भारत' की खूबियां

  • दुर्घटना की गंभीरता को रोकने के लिए 'कवच' प्रणाली का उपयोग
  • हर डिब्बे में यात्रियों को जानकारी प्रदान करने के लिए दृश्य-श्रव्य यात्री सूचना प्रणाली
  • पूरी तरह से स्वचालित दरवाजे; पूरे एक्सप्रेस में सीलबंद गैंगवे
  • एक्जीक्यूटिव कोचों में घूमने वाली सीटें
  • हर सीट के पास मोबाइल चार्जिंग की सुविधा
  • हॉट केस, बोतल कूलर, गर्म पानी बॉयलर के साथ मिनी पेंट्रीकार
  • शौचालयों की बायो-वैक्यूम रेंज; विकलांग यात्रियों के लिए विशेष सुविधाएँ
  • प्रत्येक डिब्बे में आपातकालीन खिड़कियां, अलार्म पुश बटन, टॉक बैक यूनिट, आग बुझाने की प्रणाली

 

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