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Up Kiran, Digital Desk: भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का कार्यकाल कई मायनों में उनके मुखर विचारों और टिप्पणियों के लिए जाना जाएगा, खासकर न्यायपालिका के कामकाज और संवैधानिक सिद्धांतों को लेकर। उनके कार्यकाल का एक अहम पहलू राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और संविधान के 'मूल ढाँचा सिद्धांत' पर उनके लगातार उठाए गए सवाल रहे हैं।

NJAC पर धनखड़ का अटल रुख: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) एक ऐसा कानून था जिसे संसद ने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका बढ़ाने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से पारित किया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में NJAC को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस न्यायिक फैसले पर कई बार सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए हैं। उनका तर्क रहा है कि जब संसद, जो जनता की संप्रभु इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है, कोई कानून पारित करती है, तो न्यायपालिका को उसे असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार, यह संसद की सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अपमान है।

संविधान के मूल ढाँचा सिद्धांत पर भी सवाल: न्यायिक नियुक्तियों के अलावा, उपराष्ट्रपति ने संविधान के 'मूल ढाँचा सिद्धांत' (Basic Structure Doctrine) पर भी अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। यह सिद्धांत, जो 1973 में केशवानंद भारती केस के ऐतिहासिक फैसले से आया, कहता है कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह उसके 'मूल ढाँचे' को नहीं बदल सकती।

धनखड़ ने इस सिद्धांत को 'संसद की संप्रभुता' के खिलाफ बताया है। उनका मानना है कि यह न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या के नाम पर अनियंत्रित शक्ति देता है, और यह निर्वाचित प्रतिनिधियों की शक्ति को सीमित करता है। उनके अनुसार, संसद ही देश के लोगों की इच्छा का अंतिम प्रतीक है और उसे संविधान में बदलाव करने का पूरा अधिकार होना चाहिए, बशर्ते वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करे।

संवैधानिक बहस और इसका महत्व: उपराष्ट्रपति के ये बयान न्यायपालिका और कार्यपालिका/विधायिका के बीच शक्ति संतुलन पर एक नई बहस छेड़ते हैं। एक तरफ न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता और संविधान के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका पर ज़ोर देती है, वहीं दूसरी तरफ उपराष्ट्रपति संसद की सर्वोच्चता और जनता की इच्छा के प्रतिनिधित्व की बात करते हैं।

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