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Up Kiran, Digital Desk: गुरुवार को जारी हुए आंकड़ों ने जहाँ एक ओर देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी राहत की खबर दी है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी को भी थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद जगी है। भारत की थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index - WPI) आधारित वार्षिक मुद्रास्फीति दर (annual rate of inflation) जुलाई में गिरकर (-) 0.58% पर आ गई है, जो पिछले दो वर्षों का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों (food articles) और पेट्रोल, डीजल व प्राकृतिक गैस (petrol, diesel, and natural gas) जैसे ईंधनों की कीमतों में आई कमी के कारण दर्ज की गई है।

WPI में लगातार नरमी: दो साल का रिकॉर्ड टूटा

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Commerce and Industry Ministry) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में थोक मुद्रास्फीति का यह आंकड़ा जून के पिछले महीने के -0.13% से भी काफी कम है। मार्च के बाद से ही थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट देखी जा रही है, और मई में यह 14 महीने के निम्नतम स्तर 0.39% पर पहुँच गई थी। जुलाई में खाद्य सूचकांक (food index) में 2.15% की गिरावट आई, जबकि पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों की कीमतों में 2.43% की कमी दर्ज की गई। इसी के चलते मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक क्षेत्र में चली गई।

खुदरा महंगाई (CPI) पर भी दिखा असर: जून 2017 का रिकॉर्ड टूटा

महंगाई पर नियंत्रण के संकेत केवल थोक स्तर पर ही नहीं, बल्कि खुदरा स्तर पर भी स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index - CPI) आधारित देश की खुदरा मुद्रास्फीति दर जुलाई में और भी घटकर 1.55% पर आ गई है। यह पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में एक बड़ी गिरावट है, जिसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई कमी को बताया जा रहा है। सांख्यिकी मंत्रालय (Ministry of Statistics) के अनुसार, यह जून 2017 के बाद खुदरा मुद्रास्फीति का सबसे निचला स्तर है।

यह जुलाई की खुदरा मुद्रास्फीति जून महीने की 2.1% की दर से भी 55 आधार अंक (basis points) कम है, जो कि जनवरी 2019 के बाद खुदरा मुद्रास्फीति का सबसे निचला स्तर था।

आम आदमी को मिलने वाली है राहत: WPI मुद्रास्फीति में आई इस भारी गिरावट का सीधा असर खुदरा बाजार पर पड़ने की उम्मीद है। जब थोक वस्तुओं की कीमतों में कमी आती है, तो यह कमी अक्सर खुदरा कीमतों तक भी पहुँचती है। इसके अलावा, ईंधन की कीमतों में कमी आने से परिवहन लागत (transport costs) में भी कमी आती है, जिसका सीधा फायदा उपभोक्ताओं को मिलता है। यह उम्मीद की जा रही है कि इससे आम लोगों को दैनिक उपयोग की वस्तुओं की खरीदारी में कुछ राहत मिल सकती है।

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