
Up Kiran, Digital Desk: दिल्ली सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किया गया 'स्कूल फीस विनियमन विधेयक', जो राष्ट्रीय राजधानी के निजी स्कूलों द्वारा लिए जाने वाले शुल्कों पर लगाम लगाने का वादा करता है, एक बड़े राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस विधेयक की कड़ी निंदा की है, सीधे तौर पर प्रशासन पर निजी स्कूल प्रबंधन के पक्ष में झुकाव रखने और अभिभावकों की महत्वपूर्ण चिंताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। यह विधेयक दिल्ली में शिक्षा के व्यवसायीकरण (Commercialization of Education) और अभिभावकों पर बढ़ते वित्तीय बोझ (Financial Burden on Parents) के मौजूदा मुद्दों के बीच आया है।
विपक्ष की नेता अतीशी (Atishi) के नेतृत्व में, AAP के विधायकों ने विधेयक को "मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण" (Fundamentally Flawed) बताया है और इसे पारित करने से पहले इसमें 'तत्काल संशोधनों' (Urgent Amendments) की मांग की है। AAP का आरोप है कि बिल, अपने वर्तमान स्वरूप में, छात्रों और उनके माता-पिता के सर्वोत्तम हितों की सेवा करने के बजाय, निजी स्कूल मालिकों के लिए ही अधिक लाभदायक होगा।
अतीशी ने विशेष रूप से प्रस्तावित 'शुल्क विनियमन समिति' (Fee Regulation Committee) की संरचना पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे "समस्याग्रस्त" बताते हुए कहा कि समिति का नेतृत्व स्वयं स्कूल प्रबंधन के सदस्य करेंगे। इसके विपरीत, माता-पिता का प्रतिनिधित्व बेहद कम है - समिति में केवल पांच अभिभावक प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा, जिनका चयन 'पर्ची के ड्रॉ' (Draw of Slips) जैसे एक यादृच्छिक और अपारदर्शी तरीके से होगा। यह पद्धति, AAP के अनुसार, माता-पिता को वास्तविक आवाज या सशक्त प्रतिनिधित्व प्रदान करने में विफल रहती है, क्योंकि इसमें जवाबदेही (Accountability) की कमी है।
इस गंभीर कमी को दूर करने के लिए, AAP ने विधेयक की 'धारा 4' (Section 4 of Bill) में एक महत्वपूर्ण संशोधन का प्रस्ताव दिया है। उनकी मांग है कि अभिभावक प्रतिनिधियों की संख्या को बढ़ाकर कम से कम दस किया जाए, ताकि माता-पिता के हितों को अधिक मजबूत तरीके से प्रस्तुत किया जा सके। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि AAP का जोर इस बात पर है कि इन प्रतिनिधियों का चुनाव माता-पिता के 'जनरल बॉडी चुनाव' (General Body Election) के माध्यम से होना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि चयनित प्रतिनिधि वास्तव में सभी अभिभावकों के भरोसेमंद हों और उनकी चिंताओं को निष्पक्ष रूप से सामने ला सकें, बजाय इसके कि वे मात्र एक 'सरकारी मोहरे' के रूप में काम करें।
समस्या की गंभीरता को देखते हुए, बुराड़ी से AAP के विधायक ने इस विधेयक को एक 'प्रवर समिति' (Select Committee) को भेजने का औपचारिक अनुरोध किया है। इस कदम का उद्देश्य विधायी प्रक्रिया में अभिभावकों, शिक्षा विशेषज्ञों (Education Experts), और अन्य हितधारकों (Stakeholders) के दृष्टिकोण और सुझावों को विधिवत रूप से शामिल करना है। AAP का तर्क है कि ऐसे संवेदनशील विधेयक, जिसका बच्चों की शिक्षा और हजारों परिवारों की आर्थिक स्थिति पर सीधा प्रभाव पड़ता है, को सभी पक्षों से गहन विचार-विमर्श के बाद ही अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।
अतीशी ने निजी स्कूलों की फीस में लगातार और अनियंत्रित वृद्धि को भी उजागर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कार्रवाई करने में विफल रही है, जिससे माता-पिता पर वित्तीय दबाव बढ़ता जा रहा है। AAP विधायक दल ने एक 'तत्काल फीस फ्रीज' (Fee Freeze) का प्रस्ताव रखा है। उनकी मांग है कि स्कूलों को 2024-25 शैक्षणिक वर्ष (Academic Year) की अपनी फीस से अधिक शुल्क वसूलने की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिए, जब तक उनके खातों का स्वतंत्र और पारदर्शी ऑडिट (Accounts Audit) नहीं हो जाता।
AAP का यह कदम स्कूलों में वित्तीय पारदर्शिता (Financial Transparency) सुनिश्चित करने और फीस वृद्धि को न्यायसंगत ठहराने के लिए आवश्यक है। इस कदम से फीस बढ़ाने के लिए स्कूलों द्वारा किए जाने वाले संदिग्ध दावों पर अंकुश लगने की उम्मीद है, और यह सुनिश्चित करेगा कि माता-पिता को उनके भुगतान किए गए शुल्क के बदले वास्तविक मूल्य मिले। यह विधेयक दिल्ली के शिक्षा क्षेत्र में चल रहे संघर्ष और अभिभावकों को उचित राहत दिलाने की कोशिशों में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है।
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