
Up Kiran, Digital Desk: बुधवार, 6 अगस्त, 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (US President Donald Trump) की आक्रामक व्यापार नीतियों (trade policies) और संभावित रूप से उच्च टैरिफ (higher tariffs) को लेकर बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच, भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) ने यथास्थिति बनाए रखी और अपनी नीतिगत ब्याज दरों (policy interest rate) को अपरिवर्तित रखा. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक व्यापार (global trade) में तनाव चरम पर है और भारत जैसे विकासशील देशों पर इसका असर पड़ने की आशंका बढ़ रही है.
आरबीआई गवर्नर का 'न्यूट्रल' रुख: क्या टला कोई बड़ा खतरा या सिर्फ 'इंतजार' की रणनीति?
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा (RBI Governor Sanjay Malhotra) ने इस महत्वपूर्ण निर्णय का विवरण साझा करते हुए बताया कि छह सदस्यीय दर-निर्धारण पैनल (rate-setting panel) ने सर्वसम्मत वोट (unanimous vote) से रेपो दर (repurchase rate/repo rate) को 5.5 प्रतिशत पर बनाए रखा है और 'तटस्थ' रुख (neutral stance) के साथ जारी रहने का फैसला किया है. इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक फिलहाल न तो दरों में कटौती करने की सोच रहा है और न ही बढ़ोतरी करने की, बल्कि वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों (domestic economic conditions) पर बारीकी से नजर रखेगा.
मल्होत्रा ने इस बात पर जोर दिया कि फरवरी 2025 से की गई 100 आधार अंक (basis points - bps) की दर कटौती का अर्थव्यवस्था (economy) पर प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है. उन्होंने कहा कि टैरिफ की अनिश्चितताएं अभी भी बढ़ रही हैं, जो आरबीआई के इस फैसले के पीछे एक प्रमुख कारण है. यह बताता है कि आरबीआई वर्तमान में किसी भी बड़े बदलाव से बचना चाहता है, जब तक कि वैश्विक व्यापार परिदृश्य स्पष्ट न हो जाए.
विकास का दृष्टिकोण: सेवा क्षेत्र में 'बहार', पर बाहरी मांग पर 'बादल'!
विकास के दृष्टिकोण (growth outlook) पर बात करते हुए, आरबीआई गवर्नर ने आशा व्यक्त की कि सेवा क्षेत्र (service sector) में तेजी बनी रहेगी. उन्होंने कहा, "आने वाले महीनों में निर्माण (construction) और व्यापार (trade) में निरंतर वृद्धि के साथ सेवा क्षेत्र में तेजी बनी रहने की उम्मीद है." हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बाहरी मांग (external demand) की संभावनाएं अनिश्चित बनी हुई हैं. यह अनिश्चितता लगातार टैरिफ घोषणाओं (tariff announcements) और व्यापार वार्ताओं (trade negotiations) के कारण है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.
आरबीआई गवर्नर ने सीधे तौर पर अमेरिकी टैरिफ कार्रवाइयों (US tariff actions) पर बात नहीं की, लेकिन उनका संदर्भ स्पष्ट था. गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने 7 अगस्त से अमेरिका में प्रवेश करने वाले सभी भारतीय सामानों पर 25 प्रतिशत शुल्क (25 percent duty) लगा दिया था. इसके अलावा, मंगलवार को उन्होंने नई दिल्ली द्वारा रूसी तेल (Russian oil) की लगातार खरीद के लिए टैरिफ में काफी वृद्धि करने की धमकी भी दी थी. ट्रम्प प्रशासन की ये नीतियां भारत के व्यापार संतुलन (trade balance) और आर्थिक विकास पर दबाव डाल सकती हैं, जिससे आरबीआई की मौद्रिक नीति (monetary policy) का महत्व और भी बढ़ जाता है.
निवेशकों के लिए सबक: अनिश्चितता के दौर में कैसे करें 'समझदारी' से निवेश?
आरबीआई का यह फैसला वैश्विक व्यापार युद्ध (global trade war) के बीच भारत की आर्थिक स्थिरता (economic stability) बनाए रखने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. ऐसे माहौल में, जहां अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (international trade) की दिशा लगातार बदल रही है, आरबीआई का सतर्क और तटस्थ रुख भारतीय बाजार (Indian market) को अप्रत्याशित झटकों से बचाने में मदद कर सकता है. निवेशकों को इस अवधि में सावधानी बरतने और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है जो घरेलू मांग (domestic demand) से प्रेरित हैं और बाहरी झटकों के प्रति कम संवेदनशील हैं.
--Advertisement--