Up Kiran, Digital Desk: नमस्ते! बिहार की राजनीति में सीमांचल का इलाका हमेशा से बेहद अहम रहा है. साल 2025 के विधानसभा चुनावों में भी इस क्षेत्र ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जैसे जिलों में चले चुनावी घमासान के बाद अब जब नतीजे सामने आए हैं, तो कई दिलचस्प बातें देखने को मिली हैं. आइए, एक नज़र डालते हैं कि सीमांचल ने इस बार किसे अपना जनादेश दिया है और क्या रहे यहां के मुख्य चुनावी समीकरण.
सीमांचल का सियासी मिजाज़: 2025 के नतीजे
सीमांचल का क्षेत्र, अपनी सामाजिक और राजनीतिक विविधता के लिए जाना जाता है, इस बार भी चुनावी माहौल में खूब गरमाया रहा. यहां के मतदाताओं ने अपनी पसंद साफ तौर पर दिखा दी है. खासकर पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जैसे प्रमुख जिलों में, जहां दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी, वहां कड़ी टक्कर देखने को मिली.
प्रमुख सीटों पर कड़ा मुकाबला: पूर्णिया और कटिहार जैसी सीटों पर भाजपा और जदयू के साथ-साथ राजद के उम्मीदवारों के बीच जबरदस्त टक्कर हुई. विजय खेमका, शगुफ्ता आज़िम, तारकिशोर प्रसाद और स्वीटी जैसे प्रमुख नेताओं के भविष्य का फैसला इन नतीजों से साफ हो गया है. मतदाताओं ने अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को चुनने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
किसके पक्ष में रहा पलड़ा? शुरुआती रुझानों और फिर अंतिम नतीजों से साफ हुआ कि इस बार सीमांचल में मतदाताओं का रुख किस ओर रहा. जहां कुछ सीटों पर भाजपा और जदयू गठबंधन ने अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी, वहीं कुछ अन्य सीटों पर राजद ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई. कई सीटों पर जीत का अंतर काफी कम रहा, जिससे मुकाबला और भी रोमांचक हो गया था.
क्षेत्रीय समीकरण और जातिगत गणित: सीमांचल में हमेशा से जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय मुद्दों की अहम भूमिका रही है. इस चुनाव में भी यही देखने को मिला. दलों ने अपनी रणनीति में इन बातों का खास ख्याल रखा था. धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण ने भी कई सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे चुनावी नतीजे प्रभावित हुए.
युवा और महिला वोटरों का योगदान: इस बार चुनाव में युवा और महिला वोटरों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इनके मतों ने कई सीटों पर जीत-हार का समीकरण बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विकास, रोजगार और स्थानीय समस्याओं ने इन वोटरों के फैसलों पर गहरा असर डाला.
कुल मिलाकर, सीमांचल के चुनाव नतीजे दिखाते हैं कि यहां के मतदाता काफी जागरूक हैं और सोच-समझकर अपना नेता चुनते हैं. इन नतीजों से बिहार की आगे की राजनीति पर भी गहरा असर पड़ना तय है.
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