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Up Kiran, Digital Desk: एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को 'आत्मनिर्भर' और 'विकसित भारत' बनाने का सपना देख रहे हैं, और इसके लिए सरकार अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। खासकर तेल और गैस के मामले में, सरकार चाहती है कि हम दूसरे देशों से कच्चा तेल खरीदना कम करें और अपने ही देश में ज्यादा तेल-गैस निकालें। इसके लिए लाइसेंस के नियम आसान कर दिए गए हैं, कंपनियों को काम करने की पूरी आजादी दी गई है ताकि देश में तेल की खोज और उत्पादन बढ़ सके।

इस मौके का फायदा प्राइवेट और विदेशी कंपनियों ने तो खूब उठाया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि खुद हमारी अपनी सरकारी कंपनी, ओएनजीसी (ONGC), इस रेस में बुरी तरह पिछड़ गई है।

खर्चा दोगुना, लेकिन उत्पादन घट गया: यह कहानी किसी को भी चौंका सकती है। पिछले कुछ सालों में ओएनजीसी ने तेल और गैस खोजने में अपना खर्च दोगुना कर दिया है जहाँ 2023 में कंपनी ₹30,000 करोड़ खर्च कर रही थी, वहीं 2025 में यह खर्च बढ़कर ₹62,000 करोड़ हो गया।

अब आप सोचेंगे कि इतना पैसा लगाने के बाद तो तेल का उत्पादन भी बढ़ा होगा? लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा।

कच्चे तेल का उत्पादन: 21.4 मिलियन टन से घटकर 20.8 मिलियन टन पर आ गया।

प्राकृतिक गैस का उत्पादन: 21.3 बिलियन क्यूबिक मीटर से घटकर 20.1 BCM रह गया।

साफ शब्दों में कहें तो पैसा दोगुना खर्च हुआ, लेकिन उत्पादन 4% से ज़्यादा घट गया। इतना ही नहीं, कंपनी के तेल के साबित भंडार (Proven reserves) भी कम हो रहे हैं।

तो फिर दिक्कत कहाँ है: सूत्रों के मुताबिक, ओएनजीसी की सबसे बड़ी दिक्कत उसके समुद्र में मौजूद तेल क्षेत्रों में है, जहाँ से कंपनी का 70% से 80% उत्पादन होता है। यहाँ प्रोजेक्ट्स में सालों की देरी हो रही है, निवेश की मंजूरी मिलने में बहुत समय लगता है, और दशकों पहले खोजे गए तेल भंडारों से अब तक तेल नहीं निकाला जा सका है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण KG‑98/2 ब्लॉक है, जहाँ से हर दिन 45,000 बैरल तेल निकालने का वादा किया गया था, लेकिन यह लक्ष्य आज तक अधूरा है।

इसका देश पर क्या असर हो रहा है?

ओएनजीसी के इस खराब प्रदर्शन का असर हर तरफ दिख रहा है:

निवेशक निराश: कंपनी की कमाई की रफ्तार बेहद धीमी है। इसी वजह से सितंबर 2024 में दुनिया की बड़ी ब्रोकरेज फर्म HSBC ने ओएनजीसी के शेयर की रेटिंग को 'Hold' से घटाकर 'Reduce' (बेचें) कर दिया, जिसके बाद शेयर 2.5% तक गिर गया।

रोजगार पर असर: जब ओएनजीसी कम काम करेगी, तो उसके साथ काम करने वाली हज़ारों छोटी कंपनियों को कम कॉन्ट्रैक्ट मिलेंगे, जिससे रोजगार घटेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।

देश की जेब पर सबसे बड़ी मार: यह सबसे गंभीर असर है। जब हमारे देश में तेल का उत्पादन कम होता है, तो हमें अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए दूसरे देशों से ज़्यादा कच्चा तेल खरीदना पड़ता है। इसके लिए हमें डॉलर में पेमेंट करनी पड़ती है, जिससे हमारे देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता है। आज भारत अपनी ज़रूरत का लगभग 88% कच्चा तेल आयात करता है। ओएनजीसी की नाकामी इस बोझ को और बढ़ा रही है।

एक तरफ सरकार आत्मनिर्भरता के लिए नीतियां बना रही है, लेकिन अगर देश की सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण कंपनी ही उस सपने को पूरा करने में नाकाम रहेगी, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गलती कहाँ हो रही है?